– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
सावन के पुरनवासी के इंतजार हर घर के होला काहेंकि एह दिन देश भर में राखी के तेवहार मनावल जाला. राखी माने रक्षाबंधन. ई हिंदू धर्म के लोकप्रियता के कमाल हटे कि रक्षाबंधन के तेवहार के विस्तार हिंदू धर्म से भाई-बहिन के धरम तक हो गइल बा. मानल जाला कि भाई भुजा के प्रतीक हटे आ बहिन कलाई के प्रतीक. बहिन जब भाई का कलाई प राखी बान्हेली त उनुका ई पूरा बिश्वास रहेला कि उनुकर भाई संकट परला प उनुकर रक्षा जरूर करी. बहुत प्यार से शुभकामना का सङे ऊ भाई के राह जोहेली –
“रखिया बन्हा लऽ भइया सावन आइल
जीयऽ तू लाख बरिस हो”.
रक्षाबंधन ऊ बंधन हऽ जवन हमनी के रक्षा प्रदान करेला, जेकरा के अपनवला से हमनी का सुरक्षित रहींले जा. वर्तमान में अधिकतर लोगन से पूछीं त भाई-बहिन के तेवहार से आगे ना जाई ऊ लोग आ वर्तमान पीढ़ी के सामान्य ज्ञान त एहिजा आके जइसे थथमिए गइल बा. ई पीढ़ी एकरा बाद कुछु सोचल त छोड़ीं, सुनलो नइखे चाहत. ई संस्कृति के अनुदात्त काल बा.
राजपूत जब लड़ाई पर जात रहन तब मेहरारू लोग उनका माथा पर कुमकुम, तिलक लगवला का सङही हाथ में रेशमी धगो बान्हत रहली. एह प्रथा से ई विश्वास जुड़ल रहे कि ई धागा उनुका के विजयी बनाई. कहल जाला कि ग्रीकनरेश सिकन्दर के पत्नी अपना पति के हिन्दू शत्रु पुरुराज पुरूवास (पोरस) के राखी बान्हिके आपन मुँहबोला भाई बनवले रही आ युद्ध में सिकन्दर के ना मारे के वचन लेले रही. युद्ध करत खा पुरुवास के नजरि जब हाथ में बन्हल राखी का ओरि गइल त अपना बहिन के दीहल वचन उनुका याद आ गइल आ ऊ ओकर सम्मान करत सिकन्दर के जीवन-दान दिहले.
हरियाणा का कैथल जनपद के फतेहपुर गाँव में सन् 1857 में एगो युवक गिरधर लाल के रक्षाबंधने के दिन अंग्रेज तोप से बान्हिके उड़ा देले रहन सऽ. एकरा बाद से गाँव के लोग गिरधर लाल के शहीद के दर्जा देत रक्षाबंधन के पर्वे मनावल बन्न कऽ दिहल. प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 150 बरिस पूरा भइला पर सन् 2006 में जाके एह गाँव के लोग एह पर्व के फेरु से मनावे शुरू कइल. बाकिर ई समाचार मीडिया के बहुत रास ना आइल.
भाई-बहिन का त्योहार के सबसे प्रामाणिक ऐतिहासिक संदर्भ रानी कर्णावती वाला मानल जाला, जे गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपना राज्य के सुरक्षा खातिर बादशाह हुमायूँ के राखी भेजिके रक्षा के गोहार लगवली. हुमायूँ मुसलमान रहलन तबहुँओ उनुका राखी के लाज रखले. ऊ मेवाड़ गइलन आ बहादुर शाह के खिलाफ मेवाड़ का ओरि से लड़त कर्मावती आ ओकरा राज्य के रक्षा कइलन.
अइसन ऐतिहासिक आ पौराणिक प्रसंग बहुत बाड़े सन. एक से बढ़िके एक. महाभारत काल में शिशुपाल के बध का बेरि भगवान कृष्ण के आङुरि कटि गइल रहे. तब द्रौपदी अपना साड़ी के आँचर फारिके कृष्ण के अङुरी पर बान्हि दिहली. ओह दिन सावन के पुरनवासी रहे. तब भगवान श्रीकृष्ण द्रौपदी के वचन दिहले कि समय अइला पर ऊ एह आँचर के एक-एक सूत के कर्ज उतरिहें. द्रौपदी के चीरहरण का बेरा श्रीकृष्ण अपना एह वचन के निभवले. कहल त ई जाला कि रक्षाबंधन के पर्व में आपस में एक दूसरा के रक्षा आ सहयोग के भावना एहिजे से शुरू भइल. महाभारत में त एहू बात के उल्लेख बा कि जब युधिष्ठिर भगवान कृष्ण से पुछले कि हमनी का मए संकटन से मुक्ति कइसे पा सकऽतानी जा तब भगवान श्रीकृष्ण उनका आउर उनका सेना का रक्षा खातिर राखी के तेवहार मनावे के सलाह देले रहन. उनुकर विश्वास रहे कि राखी के एह रेशमी धागा में ऊ शक्ति बा जवनासे आदमी हर संकट से उबर सकऽता.
पौराणिक प्रसंगन में आइल बा कि सावन का महीना में ऋषि लोग आश्रम में रहिके अध्ययन आ यज्ञ करत रहन. सावन के पुरनवासी के यज्ञ के पूर्णाहुति होत रहे. यज्ञ का समाप्ति पर यजमान आउर शिष्य लोगन के रक्षा-सूत्र बान्हे के प्रथा रहे. एहसे एकर नाँव रक्षाबंधन प्रचलित भइल. एही परंपरा के निर्वाह करत ब्राह्मण आजुओ अपना यजमानन के रक्षा-सूत्र बान्हेलन. बाद में एही रक्षा-सूत्र के राखी कहे जाए लागल. कलाई पर रक्षा-सूत्र बान्हत ब्राह्मण एह मंत्र के उच्चारण करेलन –
येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल.
हिन्दू धर्म के सभे धार्मिक अनुष्ठानन में रक्षासूत्र बान्हत खा कर्मकाण्डी पंडित भा आचार्य संस्कृत के एह श्लोक के उच्चारण करेलन, जवना में रक्षाबंधन के संबंध राजा बलि से बिलकुल साफ-साफ लउकऽता. ई श्लोक रक्षाबंधन के अभीष्ट मंत्र मानल जाला.
भविष्य पुराण में वर्णन मिलेला कि देवता आ दानव लोगन में जब युद्ध होखे लागल त दानव भारी परे लगलन. इन्द्र घबराके गुरु बृहस्पति किहाँ गइलन आ क्रोध में प्राणांत युद्ध के आदेश खातिर प्रार्थना कइलन. पहिले तो बृहस्पति जी समुझवलन कि क्रोध कइल व्यर्थ बा बाकिर इंद्र के हठधर्मिता आ उत्साह देखिके रक्षा विधान करे के कहलन. सावन के पुरनवासी के भोर में रक्षा के विधान संपन्न भइल. इन्द्र के पत्नी इंद्राणी विधान का अनुसार एगो रेशम के अभिमंत्रित धागा अपना पति का हाथ पर बन्हली. लोकविश्वास बनल कि इन्द्र ओह लड़ाई में ओही अभिमंत्रित धागा का प्रभाव से विजयी भइलन. तबे से हर साल सावन के पुरनवासी के दिन ई धागा बन्हाए लागल.
बाकिर ई मए ऐतिहासिक आ पौराणिक प्रसंग, जवन भारतीय लोकविश्वास के प्रान रहे, निरर्थक हो गइल, जब सभसे अधिक प्रभावशाली मीडिया सिनेमा खाली रानी कर्णावती द्वारा बादशाह हुमायूँ के राखी बन्हला के महत्त्व देबे शुरू कइलस. पचास आ साठ का दशक में रक्षाबंधन हिन्दी फ़िल्मन के लोकप्रिय विषय बनल रहल. एह घरी खाली ‘राखी’ नामे से ना ‘रक्षाबंधन’ नामो से फिल्म बनावल गइल. ‘राखी’ नाम से दू बेर फिल्म बनल. एक बेर सन् 1949 में आ दोसर बेर सन् 1962 में. सन् 1972 में एस. एम. सागर ‘राखी और हथकड़ी’ आ राधाकांत शर्मा ‘राखी और राइफल’ फिल्म बनवलन. सन् 1976 में ‘रक्षाबंधन’ नाम से फ़िल्म बनल जवना के मुख्य कलाकार सचिन आउर सारिका रहन लो. पता ना ई भारतीय सिनेमा के लापरवाही रहे आ कि अनदेखा करे के सोचल-समझल षड़यंत्र, एहिजा से हमनी के संस्कृति के एगो बहुत बड़ पक्ष ढँका गइल.
असल में सभसे अधिक लोकविश्वास दैत्यनरेश बली के पौराणिक कहानी के मिलल रहे काहेंकि आजुओ राखी बान्हत खा जवन बहुप्रचलित एकलौता श्लोक पढ़ल जाला, ऊ राजा बलिएवाला हटे. देवता लोगन के अभीष्ट सिद्धि खातिर भगवान विष्णु वामनावतार धारण कइले. वेद-वेदांग के पारंगत आ दैत्य संरक्षक गुरु शुक्राचार्य एह देवछल से सुपरिचित रहन. एहीसे ऊ राजा बली के वामनरूपधारी ब्राह्मण खातिर दिहल जाएवाला दान से बार-बार मना करत रहन. अंत में जब ऊ देखले कि उनुकर परम शिष्य खतरा में बा त ओकरा (राजा बली के) कलाई पर अभिमंत्रित रक्षासूत्र बान्हि दिहले आ कल्याण के आशीर्वाद दिहले. एही रक्षासूत्र का प्रभाव से राजा बली भगवान विष्णु के छल रूप के पहिचान लिहले आ नित्य दर्शन खातिर उनुका के मजबूर बना दिहले. तबे से ई परंपरा चल परलि. अब पुरोहित भा गुरु (अनुपलब्धता में ‘भगिना’ माने बहिन के बेटा बाद में लोक विश्वास में जुड़ गइल.) अपना यजमान भा शिष्य का कलाई पर रक्षा प्रदान करेवाली रक्षा (राखी) बान्हे लगले. राखी बान्हत खा ऊ भगवान से निवेदन करेलन कि जवना सूत्र का सहारे राजा बली बन्हिके उन्मुक्त आ अचल पद पवले आ सुरक्षित हो गइले, हमरो भक्त एह सूत्र के महिमा से मंडित होके अचल सुरक्षा के प्राप्त करो आउर यशस्वी बनो. कर्मकांड के ध्यान में राखिके आजुओ भद्रा काल में राखी ना बान्हल जाले.
एह तरह से रक्षाबंधन के पर्व सही अर्थ में भारतीय संस्कृति के संवाहक बा, जेकरा में कल्याण के कामना समाहित बा. ताकतवर आ प्रभावशाली मीडिया का एह युग में रक्षाबंधन (राखी के पर्व) अपना अनदेखा कइल गरिमा के तबे प्राप्त करी, जब लेखक, कलाकार, पत्रकार आ सरकार के ध्यान भारतीय संस्कृति के एह अस्तित्व संकट पर जाई आउर एकरा बावत टेलिविजन, सिनेमा आ प्रिंट मीडिया सक्रिय होखी.
विशेष :
येन बद्धो बली राजा, दानवेन्द्रो महाबल:
तेन त्वाम् प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल.
एह श्लोक के ‘त्वाम् प्रतिबध्नामि’ के पाठांतर ‘त्वामनुबध्नामि’ भी मिलेला. ‘बलि:’ का जगह पर ‘बली’ के प्रयोग ज्यादा मिलेला काहेंकि ‘बलि:’ के अर्थ ‘बलिदान’ सबसे अधिक प्रचलित बा आ एहसे भविष्य में अर्थसंकट संभावित रहे.