फूहड़ता लेके खाली भोजपुरी के चर्चा काहे…

<h3>- अभय कृष्ण त्रिपाठी “विष्णु”</h3>

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कबो ई सवाल हमरा मन में बारी-बारी घुमे बाकि काल पुरान मित्र डॉक्टर ओमप्रकाश जी के सन्देश से फिर से ताजा हो गइल. सवाल जेतना आसान बा जवाब ओतना आसान नइखे काहे से कारन खोजे में सबसे ज्यादा भोजपुरिये के करेजा छलनी होई. कुछ खास लिखला से पहिले हम ई कहे चाहेब कि फूहड़ता के मतलब मनोरंजन ना होला, फूहड़ता के मतलब गारी से भी ना होला अउरी सबसे बड़ बात कवनो विषय, शब्द भा वाक्य फूहड़ ना होला, फूहड़ होला ओकर प्रस्तुति करे के ढंग. एकरा के एह तरह से समझल जा सकल जाला कि यदि गारी से फूहड़ता के जोड़ल जाइत त बियाह के समय गारी कबो ना गवाइत. लवंडा नाच के भोजपुरी संस्कृति में कबो जगह ना मिलित जेकरा के आजुओ लगभग हर वर्ग द्वारा पसंद कइल जाला, ई अलगा बात बा कि आज मनोरंजन के एह विधा पर ग्रहण लग गइल बा. इहो सही बा कि हम मनोरंजन के एह विधा के कबो पसंद ना कइलीं लेकिन ई विधा काफी दिन तक भोजपुरी जगत के मनोरंजन के साधन रहे.

मूल विषय प आए प सबसे बड़ कारन ई समझ में आवेला कि भोजपुरी के फूहड़ता के चर्चा होखला प बाबू लोग खामोश हो जाला. एकर सबसे बड़ वजह ई हो सकेला कि बबुआ लोग के भोजपुरी के असली संस्कृति के ज्ञाने नइखे, एकर एगो वजह इहो हो सकत बा कि अपना पक्ष में कहे खातिर बबुआ लोग के पास बढ़िया साहित्य के अभाव हो. वइसे एकर सबसे बड़ कारन ई बा कि आज कल बबुआ लोग के खुद के भोजपुरिया कहे में लाज आवेला, बतकही करे खातिर केतनो बतकही हो जाये प एह बात में काफी हद तक सच्चाई देखाई दे जाई. अइसन नइखे कि दूसरा भाषा के फूहड़ता के चर्चा ना होखे, होखेला. बाकि ओह चर्चा के आवाज ओह भासा के बढ़िया साहित्य के आगे दब जाला. फिर चाहे दादा कोणके के मराठी हो चाहे पोलसर आ यो यो सिंह के पंजाबी होखे. एकर वजह चाहे विषय के प्रस्तुति हो चाहे सामने वाला के पास अपना प्रस्तुति के पक्ष में ठोस तर्क बस उनकर फूहड़ता भारत के परिदृश्य में आ खुद के संस्कृति में पनप ना पाइल.

अइसनो नइखे कि भोजपुरिया माटी में मजगर साहित्य रचे वाला वीर ना पैदा भइलें. साहित्य जगत से गहिरा नाता ना रहलो प कईगो नाम गिना सकिलें – मुंशी प्रेमचंद, भिखारी ठाकुर, भारतेंदु जी, कबीर दास, तुलसी दास, आचार्य महेन्द्र शास्त्री, गोरखनाथ, चौरंगीनाथ, जनकवि भोला, घाघ जी, गोपाल शास्त्री दर्शन केशरी (शास्त्री जी आजादी के पहिले आंदोलन के अलख जगावे खातिर भोजपुरी में लेख अउरी कविता लिखी जवन कि ओह दौर में बनारस के एगो अखबार के जरिये लोगन तक पहुँचत रहे बाद में इहाँ के अपन जिंदगी संस्कृत खातिर समर्पित क दिहनि). एमा से पुरान लोग भोजपुरी संस्कृति खातिर का कइले बा ई बतावे के जरूरत नइखे आ वइसहुं भोजपुरी में फूहड़ता के दौर ८० के दशक के बीच शुरू भइल. आ नया लोग काहे खामोश बा एकर जवाब इहे बा की कहे के त आजु के दिन भोजपुरी भाषा संस्कृति के बहुते ठेकेदार लोग बा बाकि जब कुछुओ करे के बात होला त जवाब मिलेला की भोजपुरी लिखत बानी त खुदे प्रकाशितो कराई आ फोकट में बाँटबो करीं.

१९८५ में मुंबई में एगो मित्र के घरे भोजपुरी फिलिम के बजट बनत रहे आ हीरोइन के मेहनताना में इहो बात के खर्च शामिल करे के बात होत रहे कि हीरोइन जेही रही ओकरा प्रोडूसर महाराज के ‘खुश’ राखे के पड़ी. ई उहे दौर रहे जहवाँ से भोजपुरी सिनेमा के पतन के शुरुआत भइल आ साथेसाथ फूहड़ता के आगाज जवन एक बार शुरू भइल त बस कारवाँ बनत गइल. केहु पइसा खातिर त केहु नाम खातिर आ केहु भेड़चाल में बाकि एकरा में से केहु एकर दोष दूसरा पर नाहीं मढ़ सकेला. हाँ एतना जरूर भइल कि एह लोग के नादानी से स्थिति बद से बदतर होत गइल.

मतलब ई कि फूहड़ता के मतलब मनोरंजन भले ना हो बाकि मनोरंजन के चक्कर में भोजपुरी में फूहड़ता घुसत गइल आ केहु कुछ ना कर पाइल. शायद पइसा के चाह या फिर रसोई चलावे के मजबूरी, एह दौर के विरोधो ना भइल जेकर कारन शायद ई रहल को समाज अपना मनोरंजन में कुछ नया चाहत रहो आ जब तक लोग के फूहड़ता के ज्ञान होखित तब तक फूहड़ता कैंसर लेखा पूरा समाज में फइल चुकल रहे. एकर एगो बड़ कारन ईहो हो सकेला कि ओह समय के भोजपुरी भाषा अउरी संस्कृति के ठेकेदार लोग के आँखि में फूहड़ता से ज्यादा एकरा पीछे पइसा लउके लागल होखो.

एह सब के बादो अइसन नइखे कि एकरा के खत्म ना कइल जा सके. बिलकुल खत्म कइल जा सकेला लेकिन समस्या घूम-फिर के आज के युवा पीढ़ी के इर्द-गिर्द आ जात बा जेकरा सामने फूहड़ता के बात करे वाला के मुंह बंद करे खातिर ना त कोई विषय बा अउरी नाहीं समय. युवा पीढ़ी के करता-धरता आ अच्छा साहित्य के चाह राखे वाला एगो नवजवान से जब कहाइल कि भाई खोज करके बता दीं कि बढ़िया साहित्य लिखे वाला के के बा त नाराज होके कहले रउआ खोजीं, हम काहे समय बर्बाद करी. मतलब कि पानी के प्यास बा आ पानी के खोजो नइखे करे चाहत लोग. बस भूखल इंसान नियर भात-भात नरियात बा. अइसे में रास्ता हमनिए के बतावे के पड़ी, चाहे कुछ अइसन करे के पड़ी कि लोग के मुंह अपने-आप बंद हो जाव…

पर सबसे बड़ यक्ष प्रश्न ई कि बिलाई के गरदन में घंटी लटकाई के !

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