राहि केतनो चलीं हम, ओराते न बा

(भोजपुरी ग़ज़ल)

– शैलेंद्र असीम


तहरी अँखिया में पानी बुझाते न बा
पीर केतना सहीं हम, सहाते न बा

रोज चूवेले टुटही पलानी नियन
ई जिनिगिया के मड़ई छवाते न बा

उनके अँगुरी के मुनरी चनरमा भइल
हाथ केतनो बढ़ाईं, छुवाते न बा

कानि का उनका कहला में जादू रहल
बाति केतनो भुलाईं, भुलाते न बा

एक्को बड़की मछरिया न मीलल भले
घोलि एतना हिंडाइल, थिराते न बा

भागि हमरो बिधाता बनवले हवें
राहि केतनो चलीं हम, ओराते न बा

का कइल जां ‘असीम’ आस के नाइ में
छेद अइसन भइल की मुनाते न बा


शैलेन्द्र ‘असीम’
हाटा, कुशीनगर
फोन – 9450769908

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