(भोजपुरी ग़जल)
– सुधीर श्रीवास्तव “नीरज”
जहां मे लौटि आइल जा रहल बा
बचल करजा चुकावल जा रहल बा।
जहां मे लौटि आइल जा रहल बा
बचल करजा चुकावल जा रहल बा।
हवस दौलत के कइसन ई समाइल
सगे रिश्ता मेटावल जा रहल बा।
लगल ई रोग चाहत के जिगर में
खुद के पल पल सतावल जा रहल बा।
गलत का ह..ई खुद के दिल से पूछीं..
सही पग पग सिखावल जा रहल बा।
गलत बेखौफ़ घूमे घर नगर में
सच प..पहरा लगावल जा रहल बा।
जे कुचले सच असक के मान लूटे
उहे मुंसिफ बनावल जा रहल बा।
जवन बुनियाद मे पाथर लगल बा
पोंति के रंग छुपावल जा रहल बा।