– सुभाष पाण्डेय
(एक)
डेढ़ कोस दउरे के ताकत,
सइ जोजन के राह,
मनवाँ, बड़ा कठिन निरबाह।
दुख दरियाव पीर पगडंडी सड़क कुटिलई काँट
कहीं प्रीति के प्याऊ लउके उहवों बंदरबाँट
के नल नील सेतु सिरिजा दे?
बान्हे सिंधु अथाह ,
मनवाँ, बड़ा कठिन निरबाह।
छावल छप्पर कब उजारि दे तोहमत के तूफान?
कब आँखिन में धूरि झोंकि दे अपने बनि नादान?
काँपत तन में आँकत मनवाँ
के होई ददिखाह?
मनवाँ, बड़ा कठिन निरबाह।
काँचे उमिरी चढ़ल माथ पर किंटल भर के बोझ
झुकल कमर जिनिगी के तहिए अब का होई सोझ?
धीरज धोती पेवन साटल
बा गमछा गुमसाह,
मनवाँ, बड़ा कठिन निरबाह।
बगलगीर अचके अझुरा के तानि दिही तलवार
गदहा हुआँ हुआँ करि जुटिहें नियम पढ़इहें स्यार
हंसा नीर क्षीर करते में
हो जइहें गुमराह,
मनवाँ, बड़ा कठिन निरबाह।
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(दू)
आजु बरसल ह।
सूरुज के ढाँकि के,
खेत-खेत माँकि के,
गरजि-गरजि डाँकि के, हरसल ह।
आजु बरसल ह।
बादर के डोली से
टारि के ओहार
केहु झाँकत रहल।
लोग कहल बिजुरी हऽ
बनि-ठनि तेयार
रूप आँकत रहल।
गलियन से गाँव ले,
माथा से पाँव ले,
मन के गहिराँव ले,
परसल ह।
आजु बरसल ह।
करिया धमधूसड़ तन
पाँव रोपि ठाढ़
ना हिलल ना डुलल।
पुरुआ के झोंका सँग
कजरी मल्हार
गाइ झुलुआ झुलल।
घर दुअरा लीपि के,
सोझे, ना छीपि के,
अइसन ई टीपि के,
सरसल ह।
आजु बरसल ह।
जेठ के झँवाइल तन
पवते जलधार
सिंधु फाने लगल।
सिरिजन के सुमहुत के
सतरंग बिचार
जग बखाने लगल।
पकड़ल कुदारी ना,
कोड़ल मुआरी ना,
खोलल किंवारी ना,
तरसल ह।
आजु बरसल ह।
प्रधान सम्पादक- ‘‘सिरिजन‘‘ भोजपुरी ई पत्रिका।
(भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के दिसम्बर 2022 अंक से साभार)