देस आजु बैचारिक जुद्धभूमि बनल बा

  • सौरभ पाण्डेय

एह में कौनो संदेह ना, जे लोकसभा के 2014 के चुनाव से, आ फेरु 2019 के आमचुनाव में दोहरियाइ के, एगो अइसना केन्द्र-सरकार के गठन भइल बा, जवन अबतक ले चलल आवत सरकारन (मुख्य रूप से कांगरेसी सरकार) के मूलभूत बिचार आ बनल सोच से निकहा फरक बिचार के अनुसार काम करे में बिस्वास करेले। अपना कार्य-प्रक्रिया आ देस के लोगन के लेके आपन बेवहार में ई सरकार पूरा देसी बिचार के हामी बिया। भारतीय बहुवर्गीय, बहुपंथीय समाज के साधे खातिर अब ले जवन बिन्दुअन के मानक मान लियाइल रहे, बूझीं त, ओह कूल्हि बिन्दुअन से फरका सोचे आ मानक पर बिस्वास करे वाला लोग आजु ना खलिसा केन्द्र के सत्ता पर काबिज बाड़े, बलुक दूनो बेरी के आमचुनाव में पूरा-बहुमत से जीत के आइल बाड़े। कायदे से कहल जाव त आजाद भारत में अइसन इस्थिती पहिला हाली आइल बा। बलुक बीच में अटलबिहारी बाजपेयीजी के गठबंधन सरकार के ना गिनल जाव तब। बाजपेयीजी आपन सरकार के बचावे आ चलावहीं में आपन सउँसे राजनीतिक काबीलियत आ बुद्धी लगा देले रहनीं। अपना मत आ सोच के हिसाब से सरकार चलावे में उहाँ कबो अस्थिराह ना भ पवनीं। एह से पहिले, उनइस्सौ सतहत्तर में कांगरेस सरकार के पराभव का बाद ई जरूर भइल जे कांगरेसियन से अलहदा एगो जुटान से सरकार बनल। जवना जुटान के नाँव ’जनता पाटी’ धराइल रहे। बाकिर, एह पाटी के जवन हाल भइल तवना प अतने कहल जा सकेला, जे ’घर के खा गइल दियरखा पर के ढिबरी’।

जनता पाटी के ओह सरकार के समाज प का कहे के, ओह घरी के सियासते प कायदे से कवनो परभाव ना पर सकल। एगो बड़हन कारन ईहो रहे, जे ओह गठबन्धन-सरकार में अइसनो पाटी आ सियासी दलन के जुटान भइल रहे जे बिचार, मत आ सोच के हिसाब से फरीक (भिन्न) रहे। ओह सरकार में जहवाँ एक ओर जनसंघ रहे त दोसरा ओर वामपंथी दल रहले सन। अब केर-बेर के बनल सङ कबले निबहित ? कांगरेसी बिचारधारा से फरिका सोच वालन के ओह सरकार से जनता के जवन अथाह उम्मेद बनल रहे, ऊ उम्मेद फरे-फूले के पहिलहीं सुखा-बिला गइल। एह सियासी घटना के बाद अगिला गैर कांगरेसी सरकार बनल अटलजी के। आ जइसन उपर लिखाइल बा, ऊहो सरकार ’कतहीं के माटी, कतहीं के ईंटा’ सभ बिटोर के बनल रहे। ओह सरकार में सभ संगठन, सभ दल, अपना-अपना फेरा आ आपन-आपन सोआरथ के लेके जवन ना घींच-तान मचवलन स, ओह के साधहीं में आ ’कामन-मिनिमम प्रोग्राम’ के अनुसार चले-चलावहीं में बाजपेयीजी के निकहा ऊर्जा खरच भ गइल करे। एह कूल्हि के परिनाम ई भइल जे ओह सरकार के क्रिया-कलाप के आ एकर राजनीति के देस-समाज पर गहिर के कहे, इचिको परभाव ना परल। समाज के नजर में सियासत के माने-मतलब आ ओकर बेवहार कांगरेसिये चाल-चलन आ परिपाटी के अनुसार बनल रहल। बाकिर सन दू हजार चौदह से बनल नरेन्द्र दामोदरदास मोदीजी के अगुआई में जवन भाजपा के सरकार बनल, आ, सन उनइस में ईहे सरकार दोहराइ के आइल, त एह सरकार के देस-समाज पर एकर बेवहार, चाल-चलन, बिचार आ मत के परभाव परत सोझ लउके लागल। एक त मोदीजी के काम करे के ढंग, जवन भारतीय सियासत में कबो ना देखल रहे, आ एगो प्रधानमंत्री के तवर पर उनकर बेक्तिगत जीवन आ उनकर पारिवारिक पृष्ठभूमी, जवन एगो शास्त्रीजी के छोड़ दियाव त आजु ले खइला-पियला-अघइला प्रधानमंत्री लोगन के सोझा एकदम से फरक रहे, के आमजन के जीवन आ सियासत के लेके उनकर सोच-बिचार पर गहीर परभाव परल बा। भारतीय राजनीत के इतिहास में ई पहिले-पहल भइल बा जब केन्द्र में गठबन्धन सरकार भइला के बावजूद प्रमुख पाटी पूरा बहुमत से सत्ता प काबिज बिया।

आज सरकार के प्रमुख पाटी घोषित रूप से दक्खिनपंथी बिचार वाला दल ह। एहसे, आजु के बिपक्षीदल खलसा राजनीतिक रूप से बिपक्ष में नइखन स, बलुक बैचारिक रूप से बामपंथी भा मार्क्सवाद के पच्छधर भइला के कारन भा बामपंथी सोच-बिचार से सहानुभूति रखला के कारन सरकार आ बिपक्ष दूनों निकहा दू छोर प बाड़न स। जहवाँ एक ओर भारत भूमि के परंपरा के लेके भाव राखे वाला, भारत के लमहर इतिहास आ एकरे लगले देस के मानसिक, आर्थिक समृद्धी प अकूत गुमान करे वाला दक्खिनपंथी बिचारधारा बा, त, दोसरा ओर स्थापित परंपरा के चुनौती देवे वाला, भारतीय बिचार-सभ्यता के लहान बतावे के फेरा में घटिहा अस्तर तक जाये में कवनो संकोच ना करे वाला बामपंथी विचारधारा बा। ई कहे के नइखे, जे अजादी के बाद से केन्द्र पर सबले ढेर दिन कांगरेस के सत्ता रहल बा। जेकर एक सुरुये से एकही बिचारधारा रहल, कवनो उत्जोग काँहें ना करे के परो, सत्ता पावल मुख्य बा। शासन करे के उत्जोग में एह पाटी खातिर बौद्धिक वर्ग के सङे ले चलला के हरमेस बाध्यता बनल रहल। एही कारने, कांगरेस सुरुये से अपना कोरा में बामपंथियन के बइठवले रखलस। ई एहसे, जे पहिल प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी के बैचारिक झुकाव बिसेस तरी के समाजवाद का ओर रहे। नेहरूजी के समाजवाद आ सोच धुर समाजवादी राममनोहर लोहियाजी के समाजवाद आ सोच से निकहा फरका रहे। नेहरूजी तनि अधिका प्रगतिशीलता के पच्छतर लउकला का फेरा में राष्ट्रीय स्वयं संघ आ अइसने सभ दक्खिनपंथी बिचारधारा वाला लोगन आ संस्था से दूरी बना के चले में भलाई बूझत रहले। एकर फल ई भइल, जे देस के लगभग हर छेत्र में, लगभग हर संस्था में, बिसेस तौर पर बामपंथी सोच वालन के कब्जा हो गइल भा कब्जा करवा दियाइल। का सियासत, का साहित्य, का शिक्षा, का कला, का प्रशासन सभ जगहा बामपंथी बिचार के डंका बजावल गइल। साहित्यिक, शैक्षणिक संस्थानन प एकर अतना करेड़ पकड़ बनि गइल, जे आजाद देस के तीन-चार पीढ़ी देसिला सोच से कटल, निकहा अनजान, बड़ भ गइल। दक्खिन बिचारधारा वालन के, उनकर शोध आ मत के, भारतीय विधा-विधानन के तार्किक बूझत सार्थक बहस कइला के कहे, ई सभ के खुल के खिल्ली उड़ावल गइल। सत्ता के आजू-बाजू बनल रहे वाला दल, कूल्हि संस्था, सियासी पाटी अबले जवन दक्खिनपंथी बिचारधारा के खुल के हवा-हवाई साबित करत बहस-मुसाहिबा आ बिचार के धरातल प हाशिया प ठेलले रहले स, ओही दक्खिनपंथी बिचारधारा के लोग, उनकर कूल्हि दल, अचके हाशिया से उठि के आजु केन्द्र में आ गइल बाड़न जा। तवना प अतने ना, बलुक पूर्ववर्ती शासक-समूह, जे कथित सेकेुलरिजम के अनुयाइये ले ना, बलुक पुरोधा कहत ना अघाला, आ ओह शासक-समूह के कान्हे चढ़ल वामपंथियन के गोल सन दू हजार चउदह से पहिले करीब बारह-तेरह बरिस ले जवन मनई के एगो बिसेस नजरिया से देखत आ देखावत मार कुफुत कइले रहलन स, जबकि ऊ मनई ओह पूरा काल-खण्ड में गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, आजु ऊहे आपन पाटी के पोस्टर-ब्वाय बनल निकहा धूमधाम-धमक से प्रधानमंत्री के तवर प आपन दूसर पाली खेल रहल बा। सेकुलरन आ बामपंथियन गोल खातिर ई अइसन कुछ जीयत माछी घोंटला से कम नइखे। तवना पर केन्द्र-सरकार के सङे-सङे राज्यन में शासन आ जनता के मुखर पच्छधरता से दोसर पच्छ के भक्की मरले बा। सबले बड़हन बात ई, जे सेकुलर मत के अनुसार जनता मतलब खलसा अल्पसंख्यक जमात होला। जवन अब सोझ मुसलमान हो गइल बा।

आजु के केन्द्र-सरकार आ भाजपा शासित राज्यन के कारन जवन दक्खिनपंथी बिचारधारा के आपन तथ्य आ कथ्य दम खम से राखे के अवसर मिलल बा, तवना पर, उत्तरप्रदेश भा असम अइसन राज्यन में बेखौफ मुख्यमंत्रियन के शासन सेकुलर, लिबरल आ बामपंथियन लोगन खातिर ढेर मथबत्थी भइल बा। कहे के माने ई, जे देस में आजादी का बाद से पहिला हाली हो रहल बा, जे दक्खिनपंथी बिचारधारा वालन के खलसा केन्द्र ना कतना जगहा राज्यन में सरकार बनावे भा वजूद में आवे के माहौल बन चुकल बा। दक्खिनपंथी आ एकरा के समर्थन देत दलन के मुखर भइला के कारन बामपंथियन, सेकुलर आ लिबरल लोगन के एक समै के खुला बिरोध आजु उनकर बेइंतहा कुण्ठा के सबब भ गइल बा। सही कहल जाव त स्थिति बैचारिक जुद्ध के भ गइल बा। एक समै के आरोप-प्रत्यारोप अब सियासी भर ले ना रहि के बेक्तीगत लानत-मलामत होत सोझ गारा-गारी पढ़े के आ एक-दोसरा के सरापे आ भाखे के माहौल बना रहल बा। अतना, आकि कौ हाली सियासी दलन के आपसी बिरोध बैचारिक ना होके खलसा बेक्तीगते ना बनावटी लांछन तक ले बुझाए लागेला। कहाला नू, जे जुद्ध आ प्रेम में कूल्हि दाँव जायज होला। एही से, दक्खिनपंथियन के फासिस्ट कहे वाला कांगरेसी, बामपंथी भा बामपंथ से परभावित दल आजु अपना कुण्ठा, जिद आ डाह का मारे घोर फासिस्ट अस बेवहार कर रहल बाड़न स। तवना प जनता-जनार्दन, बिसेस क के हिन्दू जनता, जे अबले सियासी मामिला में निसङ के भा निर्लिप्ती अस बेवहार करत रहे, आजु खुल के आपन पच्छ राख रहल बिया।

हालिया कूल्हि चुनावन के परिनामन प कवनो बिचार राखला से पहिले ई जानल जरूरी बा, जे कांगरेस आ बामपंथियन के हर जगहे से लगातार उपटत गइला के मुख्य कारन का बा ? अइसन हावा बहल त काँहें ? देखल जाव, त जइसन उपरा कहाइल बा, परम्परा-बिरोध के नाँव प देस के बहुसंख्यक अबादियन, माने हिन्दू जनता, के सोच, परिपाटी आ बिचारधारा के बिरोध प आके रुक गइल बा। अल्पसंख्यक के माने ऊन्हनीं खातिर खलसा मुसलमानन बा। आ एह कौम आ जमात खातिर हर जायज-नजायज माँग मानल-मनवावल सेकुलरन सोच वाला दल खातिर सियासत भ गइल बा। ईहे बेवहार कांगरेस होखो भा सेकुलर दल, इन्हनीं के निष्ठा आ आचरन पर सवाल उठावे के कारन बन रहल बा। आजु केहू इन्हनीं से पूछे जे मुसलमानन के उन्नति आ समाजिक उत्थान के लेके का बिचार बा, त सोझ उत्तर ना मिली। मुसलमानन के भावनात्मक दोहन के जवन ना भदेस रूप सोझ आवत जा रहल बा जे मन थोर हो जाता। चूँकि, भारत में मुसलमानन के जनसंख्या करीब पच्चीस करोड़ ले हो चुकल बा, जवन पाकिस्तान के सउँसे जनसंख्या से बेसी बा, त एह कौम के एकवटिये वोट कवनो सियासी दल के सरकार बनवा सकेला। से, मुसलमानन के पच्छधरता उन्हनीं के प्रगति खातिर नइखे, बलुक आपन सोआरथ साधे के जुगत बड़ुए। जुगत भिड़वला के ई भाव अतना चोख भइल जाता, जे, कतना सेकुलर दल हिन्दू समाज के रिगवला से बाज नइखे आवत। माने, कसहूँ मुसलमान कौम के हितैसी लउकीं। दिल्ली बिधानसभा में दिल्ली के मुख्यमंत्री के ’द कश्मीर फाइल’ के हवाला से भासन कइल आ उनका पाटी के सभ बिधायकन के बेसरमी से ठहाका लगावल एही रिगवला के भदेस आ फूहर ढङ रहे। अब ई कश्मीर के पुरान माहौल होखो, केरल में आरएसएस के कार्यकर्ता लोगन के लगातारे कइल जात हत्या होखो, बंगाल में हिन्दुअन के अबादी पर हिंसा कइल होखो, ई सभ मुसलमानन के अपना ओरि बनवले राखे के उत्जोग बाड़न स। एही से सोझ कहाव, त मुसलमान के बड़हन अबादी देस के लेके निकहा भाव में कबो ना रहल। कारन ईहे, जे केन्द्र में सभ पूर्ववर्ती सरकार होखो भा राज्यन में भाजपा के अलावा कवनो सरकार एह जमात के मन बढ़ावत रहला में हरमेस आपन फायदा देखलस। ई आजु देस के जीउ-जान साँसत कइले जा रहल बा। भाजपा एही सोच के खिलाफ माहौल बना के बिना मुसलमानन के पच्छ लिहले सत्ता बनवले जा रहल बा। कांगरेसी आ बामपंथी दल के बड़हन मोस्किल ई बा कि हिन्दू समाज के बड़ वर्ग भाजपा का ओर एकवटियाइल जा रहल बा।

जवना देस के नागरिक आपन देस के संप्रभुता आ राष्ट्रीयता के लेके जागरुक ना रहेले, ऊ देस ना खलसा उन्नती के राहि प पिछड़ जाला, बलुक आपन वजुदओ के मेटात देखे लागेला। आजु पाकिस्तान के हाल सभ के लउक रहल बा। श्रीलंका के हाल आँख खोले वाला बा। हालत ई बा, जे जवन बामपंथ राष्ट्रीय अवधारना के खुल के बिरोध करेला, चीन आ रूस के नाँव प एकरा गूँगी मार देला। चीन के विस्तारवाद आ रूस के धमक प बामी लोगन के बिरोध में हाल्दे बोल ना फूटे। चीन में मुसलमानन के का हाल बा ई अब अलोत नइखे रहि गइल। बाकिर रोहिंग्या भा पाकिस्तानी मुसलमानन प हाहो-दइया करे वाला मुसलमानी भा सेकुलर जमात चीन के बिरोध प गुम्मी कछले रहेला। बाकिर ईहो ओतने साँच बा जे दक्खिनपंथी बैचारिक जमात के बुद्धिजीवी आ पत्रकार लोग चीन के मुसलमानन के लेके निकहा बिरोध मे सवाल तक नइखन उठावत जा। बामपंथियन के बिचार में चीन के पच्छधरता कइल ढेर जरूरी बुझाला। परसाल लद्दाख में चीन के घुसपैठ प कांगरेस आ काम्युनिस्ट दल जतना खुल के चीन के समर्थन भा भारत के बिरोध में मुखर रहले स, ऊ कवनो राष्ट्रभक्त खातिर अचंभा से कम ना रहे। चीन से आवत घटिया समानन प सेकुलर जमात के कवनो बिरोध ना रहे। जबकि एह पर वर्तमान सरकार द्वारा लगावल जात रोक प सेकुलरी-बामपंथी जमात चीखमचिल्ली मचावे लगलन स। बजार प नियंत्रन सरकार ना आमजन करेला। जइसे-जइसे आमजन शिक्षित होत जाई, सही आ बाउर के फैसला करे में सच्छम होत जाई। बे शिक्षित आ जागरुक जन के लोकतंत्र कामयाब ना हो सके। ई आमजन के जगरुकतवे ह, जे आपन देस में का सही बा, का बाउर बा, एह प सोझ आ निकहा सवाच सकऽता।

सही बात ई बा जे दक्खिनपंथी बिचार के पत्रकार होखसु, भा बुद्धिजीवी वर्ग, अपना बात के ढङ से राखे में बामपंथियन से निकहा पाछा बा लोग। ई कुशलता इनकरा लोगन खातिर सीखे जोग बा। दक्खिनपंथी संगठनन के बैचारिक दरिद्रता के एगो बड़हन रूप अपना बीच के प्रतिभा के नकारल आ अपना लहान सोआरथ में घटिया गुटबाजी में अझुराइलो बा। एकरो मजगर मनोबैज्ञानिक कारन बा, जे दक्खिनपंथी जमातन के सत्ता के लगे बनल रहला के संजोग नइखे भेंटाइल। से, अपना जमात के सीढ़ी अस बना के आपन सुथरल समूह बनावे के लकम ले नइखे सिखले लोग। ईहे कारन बा जे पत्रकार लोग भा साहित्यिक आ शैक्षणिक संस्थानन के मुखिया के तौर पर आजुओ बामपंथियन भा छद्म-राष्ट्रवादी लोग भेंटाले। ई ना भुलाए के चाहीं, जे आजु के देस आ आजु के पीढ़ी अपना हक के लेके निकहा सचेत बा। आजु के युवा ’स्पून-फीडिंग’ से समाचार ना घोंटसु। ना एह लोगन के ढेर बहकावल जा सकेला। आजु देस के सियासत जनता साध रहल बिया। एही परभाव के चरचा एह आलेख के शीर्षक बा। एही से बामपंथी युवा संगठनन के खिलाफ में दक्खिनपंथी सोच के संगठनन के उभार चकित क रहल बा, ’न दैन्यं न च पलायन के सूक्ति प। जनता के मनभाव बदल रहल बा। आजु ले जनता के मन-बिचार में जवन एहसासे कमतरी पगावे के लकम बनल रहे आ अपना राष्ट्र के लेके लगातार नकारात्मक भाव बनावल जात रहे ओह के खिलाफ लोग बोलल सुरू क देले बाड़े। एह बात के नेता, प्रवक्ता आ पत्रकार जतना हाल्दे बूझि जासु ओत सही होई। एहके एह संदर्भ से बूझल जा सकेला जे जवना देसन में बामपंथ अपना धमक से उभार में रहे ओहू देसन से हकालल जा चुकल बा भा हकालल जा रहल बा। फेटेंसी के मुलम्मा ढेर दिन ना चले। कहे के नइखे, जे भारत सहअस्तित्व के सोच वालन के देस ह। एजुगा के समाज आपरूपी सेकुलर बिचार वाला ह। एकरा पच्छिम के देसन से बनावटी सेकुलरिजम नइखे सीखे के। एही भाव के जबरदस्त परभाव आ समाज प पड़ रहल बा। भारत कबो राजनैतिक इकाई नइखे रहल। बलुक ई एगो आध्यात्मिक भौगोलिक इकाई रहल बा। जबले एह बात के निकहा ना पतिया लियाई देस के बहुसंख्यक वर्ग के बामपंथी वर्ग से भिड़ंत बनल रही। बामपंथी लोगन के हर भारतीय अवधारना से बनल घिना आजु के सियासी सर्किल में बवाल के मुख्य कारन बा।

लेखक संपर्क – एम-2-ए-17, पीडीए कॉलोनी, नैनी, प्रयागराज – 211008

(भोजपुरी दिशा-बोध के पत्रिका पाती से साभार)

Loading

Scroll Up