गजल – हीरालाल ‘हीरा’
- हीरालाल ‘हीरा’ सुर साधीं तऽ लय बिगड़े, बे-ताल के बनल तराना बा। जिनिगी गावल बहुत कठिन बा, उलझल ताना-बाना बा।। केतना अब परमान जुटाईं,अपना त्याग, समरपन के, अरथहीन अब…
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- हीरालाल ‘हीरा’ सुर साधीं तऽ लय बिगड़े, बे-ताल के बनल तराना बा। जिनिगी गावल बहुत कठिन बा, उलझल ताना-बाना बा।। केतना अब परमान जुटाईं,अपना त्याग, समरपन के, अरथहीन अब…
- अक्षय पाण्डेय (एक) सुनऽ धरीछन ! जिनिगी में बहुते जवाल बा छन भर हँसी-प्यार संग जी ले। पानी के जी भर उछाल के मुट्ठी में रेती सम्हाल के गुनऽ…
अनिल ओझा ‘नीरद’ (एक) दोसर का बूझी इहवाँ, दोसरा के बेमारी?ऊ त बूझऽतारी चीलम, जेह पर चढ़ल बा अँगारी।। देशवा के देखऽ अपना, आजु इहे हाल बा।नेता लोग का करनी…
- चन्द्रदेव यादव (एक) पवन पानी धूप खुसबू सब हकीकत ह, न जादू ! जाल में जल, हवा, गर्मी गंध के, के बान्ह पाई? रेत पर के घर बनाई? हम…
- ओमप्रकाश अमृतांशु कांचे कोंपलवा मड़ोड़ि दिहलस रे, इंसान रूपी गीधवा जुलूम कइलस रे. खेलत-कुदत-हँसत रहले हियरवा, अनबुझ ना जाने कुछु इहो अल्हड़पनवा, रोम-रोम रोंवां कंपकंपाई दिहलस रे, इंसान रूपी…
(पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से - 23वी प्रस्तुति) - रिपुसूदन श्रीवास्तव जिन्दगी हऽ कि रूई के बादर हवे, एगो ओढ़े बिछावे के चादर हवे. जवना घर में…
- मनोज भावुक बोल रे मन बोल जिन्दगी का ह ... जिन्दगी का ह . आरजू मूअल, लोर बन के गम आँख से चूअल आस के उपवन बन गइल पतझड़,…
- डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल एक लागेला रस में बोथाइल परनवा ढरकावे घइली पिरितिया के फाग रे ! धरती लुटावेली अँजुरी से सोनवा बरिसावे अमिरित गगनवा से चनवा इठलाले पाके…