भोजपुरी के विकासमान वर्तमान

– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

Ram Raksha Mishra Vimal

अपना प्रिय अंदाज, मिसिरी के मिठास आ पुरुषार्थ के दमगर आवाज का कारन भोजपुरी शुरुए से आकर्षण के केंद्र में रहल बिया. भाषा निर्भर करेले विशेष रूप से भौगोलिक कारन आ बोलेवाला लोगन के आदत, रुचि आ प्रकृति पर. विशेष परिस्थिति एह में आपन बरियार प्रभाव छोड़ेले. भोजपुरिया लोगन के अलग-अलग क्षेत्रन में प्रभावित करेवाला अलग-अलग कारकन का चलते भोजपुरियो के कई गो रूप लउकऽता आ अभी तक कवनो महाबीर एकरा के अनुशासित कऽके मानक रूप ना दे पवले. वर्तमान में ई काम आसान नइखे रहि गइल, बहुत कठिन बा. खासकर अइसना में जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जबर्दस्त प्रवेश भइल बा भोजपुरी में. जब भी अंकुश चली त मुद्रिते माध्यम का हाथ से, ओकर कवनो विकल्प नइखे बाकिर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के प्रभाव सौ गुना अधिक रही. बहुत सोच समझ के, पूर्व योजना बनाइके ई काम करे के परी. एकरा बादे भोजपुरी भाषा अउर साहित्य के गत्यात्मक आ विकासमान वर्तमान स्वरूप कवनो भाषा के ईर्ष्या के विषय बन सकऽता.

भले भोजपुरी के मानकत्व खतिर अधिकांश साहित्यकार एकर ध्यान रख रहल बाड़े कि अइसने प्रयोग चलावल जाव, जवन मानकीकरण का चौहद्दी में समा के, जवन सभका खतिर सुग्राह्य होखे आ तर्कसंगत होखे. जे अपना क्षेत्रीय बोली का मोह से ऊपर ना उठि पाई ओकर मेहनत कुछ पानी में जाई, एह में कवनो संदेह नइखे. कुछो होखे, लेखन कार्य चलत रहे के चाहीं आ आजु तक के भोजपुरी साहित्य संपदा पर खाली संतोषे ना गर्व गइल जा सकऽता जेकरा भंडार में कवनो विधा के स्तरीय रचनन के अभाव नइखे. भोजपुरी प्रकाशक का अभाव आ छपाई में बेसी खर्च का चलते ढेर पुस्तक बरिसन से प्रकाशनाधीन बाड़ी सन आ प्रकाशितो पुस्तकन के अशेष सूची बनावल शोध कार्य के विषय हो गइल बा. राष्ट्रीय आ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एकाध गो पुस्तकालयन का निर्माण से एह कार्य में सहूलियत मिल सकऽता, जो हर रचनाकार आपन किताब ओहिजा भेजे तऽ. हालांकि अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, पटना, भोजपुरी अकादमी, पटना आ रामसखी रामबिहारी स्मृति पुस्तकालय-सह-शोध संस्थान, सारण का सङहीं पांडेय नर्मदेश्वर सहाय, पं. गणेश चौबे, पांडेय कपिल, श्री जगन्नाथ, डॉ. नंदकिशोर तिवारी, डॉ. राजेश्वरी शांडिल्य आ ‘पाती’ का जरिये अशोक द्विवेदी जइसन एकसदस्यीय संस्था एह संदर्भ में आपन भूमिका बखूबी निभवले बाड़ी सन आ आजो निभा रहल बाड़ी सन बाकिर ओके पर्याप्त नइखे कहल जा सकत.

वर्तमान भोजपुरी के पत्र-पत्रिकन पर संतोष कइल जा सकऽता. एह घरी जबकि हिंदी में साहित्यिक पत्रिका कुछ रचनाकार सदस्यन का भरोसे चल रहल बाड़ी सन ओहिजा भोजपुरी में लघु पत्रिकन के अतना संख्या कम नइखे. कई गो पत्रिका बुता गइली सन बाकिर कई गो उदितो भइल बाड़ी सन. कुछ पत्रिकन के कलेवर आ व्यक्तित्च अपना रंगीनियत में काफी आकर्षक बा. एह में ‘दि संडे इंडियन’, ‘भोजपुरी संसार पत्रिका’ आ ‘सिने भोजपुरिया’ के नाँव खासतौर पे लिहल जा सकऽता. नियमित रूप से मासिक तौर पर छपेवाली पत्रिका में ‘भोजपुरी माटी’ के ना भुलावल जा सके. अपना ठोस, संतुलित आ स्तरीय रूप के बरकरार राखे वाली पत्रिका में ‘सम्मेलन पत्रिका’, ‘पाती’, ‘कविता’ आ सुरसती के नाम गर्व के साथ लिहल जा सकऽता. ‘माई’, ‘पनघट’, ‘परास’, ‘भोजपुरी जिंदगी’, ‘भोजपुरी विश्व’, ‘सिरजनहार’, ‘साखी’ आदि पत्रिकन के अंक बढिया निकलतारे सन. छमाही पत्रिका ‘सूझ-बूझ’ प्रवेशांके से भोजपुरी पत्रकारिता के एगो नया संभावना के रूप में लउकऽतिया. भारत का अलावे दोसरो देशन से पत्रिकन के निकले के खबर मिलत रहऽता बाकिर देश में ओकरा अनुपलब्धता के कारण एह विषय पर गंभीरतापूर्वक कुछ कहल नइखे जा सकत.

इंटरनेट पर अँजोरिया डॉटकॉम, भोजपुरिया डॉटकॉम, जय भोजपुरी डॉटकॉम, ग्लोबल भोजपुरी मूवमेंट डॉटनिंग डॉटकॉम, भोजपुरीलिरिक्स डॉटकॉम, चौराचौरी एक्सप्रेस, भोजपुरी आर्ग डॉटकॉम, बिदेशिया डॉटकॉम, पूर्वांचल एक्सप्रेस डॉटकॉम आदि पत्रिका अपना-अपना खास तेवर का साथ काम कर रहल बाड़ी सन. खुशी के बात ई बा कि एह में हर साइट कवनो खास विधा खतिर विशेष रूप से जानल जाले सन. कवनो समाचार त कवनो साहित्य-संस्कृति, कवनो सोशल नेटवर्किंग, कवनो भोजपुरी अस्मिता, कवनो खूबसूरत पत्रिका त कवनो भाषायी आंदोलन खातिर चर्चित बाड़े सन. कवनो साइट के तेवर अग्र बा त कवनो के धीर, गंभीर, प्रशांत. कवनो के तेवरे नइखे त कवनो के एह से कवनो मतलब नइखे – ईश्वर का कृपा से जइसन बन जाए. साहित्य, संस्कृति से लेके गीत, संगीत, फिल्म, टी॰वी॰ – हर क्षेत्र में सर्वाधिक चर्चित लगभग पचीस-छब्बीस गो वेबसाइट बाडे़ सन. ई भोजपुरी खतिर गर्व के विषय बा. अतने ना कुछ वेबसाइट समाज आ संस्कृति खतिर घातक वेबसाइट, संस्था आ कार्यन पर निगाह जमवले बाड़े सन – भोजपुरी माटी खातिर ई शुभ संकेत बा. नेट का माध्यम से छठ के परसाद भेजाए लागल बा देश का कोना कोना में – ई सराहना के बात बा.

कवनो भाषा आ भाषायी संस्कृति के व्यापक प्रचार-प्रसार में सिनेमा के महत्वपूर्ण भूमिका होले. भोजपुरी में ई अनमोल आ सुखद घड़ी आइल पहिल फिल्म ‘गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इबो’ के 1962 में रिलीज भइला से, जेकर मुहूर्त भइल रहे 1961 में. एकर निर्माता नाज़िर हुसैन जी के भोजपुरी संसार कबो ना भुलाई. तब से कई गो फिल्म भोजपुरी भाषी क्षेत्र में हिंदी फिल्म के समानांतर सफलता के झंडा गाड़े शुरू कइली सन. 1986 तक के फिल्मन में लागी नाहीं छूटे, बिदेशिया, हमार संसार, दंगल, दुलहा गंगा पार के के विशेष रूप से चर्चा कइल जा सकऽता. लगभग सात बरिस का अंतराल में भोजपुरिया दर्शक त जइसे भोजपुरी फिल्म के भुलाइए गइल. दरअसल ओह घरी तक भोजपुरी फिल्म का ऊपर हिंदी फिल्म के मसाला फार्मूला पूरी तरह हावी हो गइल रहे. मौलिकता से कोसो दूर आ अपना माटी से भटकल भोजपुरी फिल्म के 2003 में फेरू से एगो नया जन्म मिलल ससुरा बड़ा पइसा वाला से, जेकर अभिनेता रहन लोकगायक मनोज तिवारी आ तबसे जे भोजपुरी फिल्मन के दौर चलल त नया-नया प्रयोग करत अजुओ पूरा गति में बा. ई बात दीगर बा कि आज कई गो भोजपुरी फिल्म बक्सा में बंद बाड़ी सन आ ढेर त मुँहहीं का भरे गिरऽतारी सन बाकिर तबहुँओ निर्माता लोगन के आकर्षण का केंद्र में त ई बिजनेस बड़ले बा. एहिजा ई कहल ज्यादे ठीक होई कि भोजपुरी फिल्म निर्माता लोगन के एह विषय पर मंथन करेके चाहीं कि काहें अतना असफल हो तारी सन फिल्म. फिल्म के कथानक का साथ-साथ गीत आदि के भी पृष्ठभूमि जो भोजपुरी के आपन मौलिक ना रही त नीमन दिन देखे के लोभ छोड़हीं के परी. लोकोगायन के चर्चा कइल ओतने जरूरी हो गइल बा काहें कि भोजपुरी समाज पर ओकर खासा असर बा. एह में कवनो संदेह नइखे कि आज भोजपुरी संगीत मड़ई आ चौपाल से उठिके राष्ट्रीय आ अंतर्राष्ट्रीय मंचन पर आसीन हो चुकल बा आ ई बहुत खुशी के बात बा बाकिर एकर आयोजन अतना महङा होखे लागल बा कि मड़ई आ चौपाल से ई जइसे अलोपिते हो गइल बा. पइसा आ प्रचार का लोभ में लोकसंगीत का सङे खेलवाड़ो खूब भइल. नया धुन का चक्कर में कवनो अवसर के धुन कवनो अवसर के गीतन में भी खूब ढुकावल गइल बा. अगिला पीढी खातिर लोकगीतन के वास्तविक धुनन के पहिचानल बहुत कठिन काम हो जाई. फूहड़ गीतन के बाढ़ि एकर रहलो-सहल कोर-कसर पूरा कऽ दिहलसि. फूहड़पन आ असभ्य भाषा के लोकगायन में जबर्दश्त प्रवेश भोजपुरी संस्कृति खातिर बहुत बड़ खतरा बा. भोजपुरी संगीत खातिर लिखे जाये वाला गीतन के रचनाकारन में साहित्यकार लोगन के संख्या ना के बराबर बा – ई एगो बरियार कारन बा एकर. संस्कार गीत, धोबी गीत, जँतसार, रोपनी के गीत, पचरा आदि लोकगीतन के संरक्षण आज के महत्त्वाकांक्षी गायकन का मिलावटी प्रवृत्ति का कारण चुनौतीपूर्ण हो गइल बा. एही तरह से सोरठी बृजभार, लोरकी आदि लोकगाथा आ गोंड़ऊ नाच, हुरका के नाच आदि लोकनृत्यन के बचावल बहुत जरूरी बा. एह संदर्भा में वर्तमान बाजार में प्रतिष्ठित गायक लोग आ महुआ, ईटीवी आदि चैनल जो रुचि देखाई त संरक्षण के उमेदि कइल जा सकऽता.

पिछला कई साल से संविधन के आठवीं अनुसूची में भोजपुरी के दर्ज करावे खातिर प्रयास चल रहल बा. एने एह में अउर तेजी आइल बा बाकिर सिवाय आश्वासन के कवनो परिणाम नइखे. एमें कवनो संदेह नइखे कि भोजपुरी भाषियन के संख्या भारत में बड़हन बिया, एकरा सङही विश्व के कई गो देशन – मारिशस, सूरीनाम आदि के मुख्य भाषा हऽ भोजपुरी. अइसना में एकरा साहित्य, संस्कृति आदि के विकासमान रूप में अउरी बढ़ंती खातिर जरूरी बा कि संविधान के आठवीं अनुसूची में एकरो नाम दर्ज होखो.

अब त कई विश्वविद्यालयनो में भोजपुरी के पढ़ाई चालू हो गइल बा आ कहीं न कहीं भोजपुरी से संबंधित चर्चा चलिए रहल बा – ई संतोष के विषय बा. बाकिर अतने से काम ना चली. खाली साहित्य-सृजन से बात ना बनी. साहित्य का अलावे भोजपुरी के भाषा रूपो पर मंथन कइल बहुत जरूरी हो गइल बा. भाषा शास्त्री लोगन के चाहीं कि बिना कवनो पूर्वग्रह के बिना समय गँववले एह काम में लागि जाईं. जब तक भोजपुरी के मानक रूपो के एगो मोटा-मोटी रूपो सामने ना आई तब तक व्याकरण आदि के लेखन ओतना महत्वपूर्ण नइखे.

लेकिन, एह सभसे जरूरी ई बात बा कि भोजपुरी के गैरसाहित्यकार वर्ग में ई जागरूकता ले आइल जाव कि लोग बाहर-भीतर हर जगह खुल के भोजपुरी बोलसु, खरीद के भा माङिके भोजपुरी के किताब आ पत्र-पत्रिका पढ़सु. एह तरह के जागरूकता अभियान भोजपुरी के अग्रणी संस्थान के चलावे के परी. बुद्धिजीवी वर्ग के दायित्व त अभी शुरूए नइखे भइल. अभी तक भोजपुरी के स्थिति ई बा कि ऊ अपने लोगन के नजर में सम्मान के भाषा नइखे. हमनी के बियाह, जनेऊ आदि हर तरह के परोजन खतिर नेवता, पोस्टर आदि हिंदी का सङहीं भोजपुरियो में लिखे शुरू करे के परी. भोजपुरी सम्मान के क्रांति अब ज्यादा प्रासंगिक हो गइल बिया. जब तक एह शून्य से सम्मान यात्रा के शुरूआत ना कइल जाई आ जब तक हर जुबान से भोजपुरी स्वाभिमान के रस ना बरिसे लागी, तब तक एह विषय पर कवनो गंभीर टिप्पणी महत्त्व नइखे राखत.


(भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका “पाती” के ६४वाँ अंक से. पूरा पत्रिका पाती के वेबसाइट पर मौजूद बा.)

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