भोजपुरी संस्कृति पर होत हमला. एगो सामयिक चेतावनी.

28 Aug 2008

परमानंद सुबराह

ई अंश हमरा संघतिया भोजपुरिहन के संबोधित बा. एह देश में हमनी के कुली पुर्वजन के वंशज सोचले रहुवे लोग कि एह देश के सभ्यता आ शिक्षा पर ओह लोग के पूरा मलिकाना रही. हमनी से जुड़ल हर चीज के हिकारत से देखल गइल, हमनी के रहे के तौर तरीका, खाए के तरीका, बोले के तरीका. हमनी के परपंरा आ हमनी के भाषा मजाक के विषय बना दिहल गइल. मानत बानी कि दुनिया से संवाद के माध्यम खाली भोजपुरी के राखेवाला ओह लोगन से आशा ना कइल जात रहे कि ऊ लोग क्रिओल के जानकार बनि जावो, अगरेजी आ फ्रेंच के त बाते छोड़ दीं. (दुनिया के भाषाविद् एहमे कवनो बुराई ना देखिहें बाकिर तब भाषाविद् लोग पढ़ल लिखल आ सभ्य समाज के लोग होला.) तबहियों ऊ लोग सुपरवाइजरी आ दासन से काम लेबे में बढ़िया रहुवे. समाजशास्त्रीओ लोग जानेला कि हर समुदाय अपना अलगा रहनसहन के अधिकार राखेला, आ कवनो परंपरा दोसरा कवनो परंपरा से ना त हेठ हो ले ना जेठ हो ले, चाहे ऊ पेरिस, लंदन, अफ्रीका भा न्यू गिनिया में रहे.

हमरा इयाद आवत बा स्कूल के अंगरेजी के किताब में लिखल एगो अंगरेज के भारत यात्रा के वर्णन. ऊ कवनो तरह से हिन्दी बतिया लेत रहुवे. एक जगहा ओकरा अगो गंवई आदमी से भेंट हो गईल आ ऊ ओकरा घरे चलि गइल. ओकर मेहरारू बहरी निकलल आ अपना बचवा का ओर इशारा करत कहलसि कि राम के बापू घरे नईखन. ऊ यात्री बहुतेर कोशिश कईलसि ई जाने बदे कि ऊ अपना मरद के नाम बता देव, बाकिर ओकरा सफलता ना मिलल. ऊ चहलसि कि कम से कम ओकरा संगे ओकर का रिश्ता बा ई त बता देव, बाकिर उहो ना!

ओह जमाना में भारत के दोसरा इलाका के कवनो औरत अपना मरद के आपन पतिदेव, भगवान जइसन पति, कहि के बता सकत होखी बाकिर ओह कहानी के औरत ओकरो खातिर तईयार ना रहे. ओह यात्री के निराश हो के लवटे पड़ल.

एकरा बाद क्लास में तरह तरह के टिपण्णी सुने के मिलल रहे. हमरा खातिर ई लाज के बाति रहे कि हम तबहियो चुप लगा के रह गइनी. हम अपना क्लास के ई ना बता सकत रहीं कि हमार महतारी, आजुवो ऊ ९६ बरिस में टाँठ बिया, भगवान ओकरा के जियवले राखसु, हमरा बापू के नाम ले के कबहियों ना बोलावे. ना त कबहूं तू कहि के बोलवलसि. हमेशा रउरा कहिके बोलावे. जे ना जानत होखे ओकरा के हम बता दीं कि भोजपुरी में सर्वनाम आ क्रिया के दू गो रुप बहुतायत से मिलेला. एगो साधारण आ दोसरे आदर वाला. दोसरा से जब बापू का बारे में कहेके होखे त ऊ परमानंद के बापू कहि के काम चला लेबे, कबहियो हमार भतार कहि के ना. भतार शब्द भोजपुरी में वर्जित शब्दन लेखा होला. एकर क्रियोल समशब्द मारि त टायलेटो में ना सोचल जा सके. आजु हमार बापू जिन्दा नइखन तबहियों माई खातिर आजुओ ले उहे संस्कार बा.

हमरा ई महसूस करे में बहुते समय लागल कि अपना भाषा भा अपना संस्कृति खातिर लजाये के भा अपना के छोटहन समुझे के कवनो जरुरत ना रहे. आजु हमरा अचरज होखे ला कि पढ़ाई में तेज रहला का बादो, फ्रेंच छोड़ि के जवना में तीस का क्लास में हम सोरह से उपर कहियो ना चहुंप सकनी, हमरा में हीन भाव काहे आईल? बाकिर तब हम इहो महसूस करे नी कि हमनी का पीड़ित आ दलित रहनी जा, कम से कम ओह लोग का नजरी में जे अपना के बेसी सभ्य समुझत रहे.

हमरा घरे हाथ से लिखल रामचरितमानस के कापी रहे जवन हमार परदादा अपना संगे ले के आइल रहलन. बाद में जब छापल किताब मिले लगली सन त ऊ पाण्डुलिपी कतहीँ धरा गइल आ बाद में हेरा गइल. बचपन में हमरा ओकरा अमोलपनके अहसास ना रहे.मेहनत से लिखल ओह किताब के जवन अपना मूल में तीन हजार साल पहिले तब लिखाइल रहे जब आजु के दुनिया के सभ्य कहाये वाला देशन, ग्रीस के बात छोड़ दीं तब,के लोग जंगली का तरह रहत रहे. बाद में बिसुनदयाल आन्दोलन से अपना बापू का लगाव का चलते हमरा अपना सांस्कृतिक धरोहर के अमोलपन के अहसास भईल. समस्या अतने रहि गइल कि बिसुनदयाल आन्दोलन के लोग भोजपुरी का जगहा हिन्दी के अपना संस्कृति के माध्यम बना लिहल.

सर शिवसागर रामगुलाम के भोजपुरी से कवनो हिचकिचाहट ना रहे, हो सकेला कि उनुका पण्डित बिसुनदयाल जइसन बढ़िया हिन्दी ना आवत रहे एह चलते, बाकिर एकरा से हमरा कवनो अन्तर ना पड़े. अपना संस्कृति से लगाव फेर से पैदा करावे खातिर हम बिसुनदयाल आ शिवसागर रामगुलाम दुनू जाना के आभारी बानी. ओह लोग के कहनाम रहे, अपना भाषा आ अपना संस्कृति का मामिला में हमेशा आपन माथ उपर राखऽ.हमनी का आपन देश ले लिहले बानी, अब फेर केहू हमनी के संस्कृति कवनो बात के अपमानित ना कर सकी. आजु का भाषा में कहीं, त ऊ लोग हमनी के उहे दिहल जे आजु बराक ओबामा अमेरिका के ब्लैक समुदाय के दे रहल बाड़े, अपना में भरोसा राखे के ताकत!

बाकिर ई का! ओह वादा के दू पीढ़ी का बादे आजु हमनी के संस्कृति के हिकारत से देखे वाला लोग जनम गइल बाड़े. कुछ लोग अपना के हमनी से ऊपर समुझत बा. जे अपना के अतना खास समुझत बा कि ओकरा हमनी घटिया लोगन के तौर तरीका सीखेके जरुरत नइखे. हमनी का अपना भाषा भा संस्कृति खातिर कवनो हीन भावना ले अइला के काम नइखे, अ हमनी का केहू के एकर इजाजत ना देब जा कि ऊ हमनी के कचार सको. जे समुझत होखो कि हमनी के अपमानित करियो के ऊ लोग विजयी हो सके ला त ओह लोग के डैनिश कार्टून मामिला के इयाद दिआवल जरुरी बा. एह घटना का बाद आजु अमेरिका समेत कवनो देश के लोग दोसरा के सभ्यता के मजाक उड़ावे के पहिले चार हालि सोची.

हम इहो जोड़ल चाहत बानी कि अइसनका लोग कवनो खास समुदाये में नइखे. हमनी के भोजपुरिहा समाजो के ढेरे लोग भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के हिकारत से देखे ला. अगर एह बारे में कुछ ना कइल गइल त हमनी के भाषा आ संस्कृति पर हमला बढ़ते जाई आ हमनी के पूर्वजन के सभ्यता आ संस्कृति बिला जाई. हम आह्वान करत बानी. ओह लोग के जे हमनी के संस्कृति के विकास में रुचि राखत बा कि हमनी के भाषा आ संस्कृति के हर रुप के संरक्षित करे खातिर संसाधन आ विद्वानन के लगावे खातिर सरकार पर दबाव बनावे. बहुते लोग के मानल हो सकेला कि भोजपुरी मृतप्राय हो गइल बा आ हमनी के विकास के जरुरत के लायक नइखे रहि गइल. बाकिर ई भूल होखी. ओह लोग से हम अतने कह सकीले कि निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति के मूल!

पिछलका शताब्दी में विश्वविद्यलायन में पढ़ावल जात रहे कि लैटिन, क्लासिक ग्रीक, आ हिब्रू मृत भाषा हईं सन. पूरा दुनिया में छितराईल यहूदी सोच लिहले कि ई ना मानी लोग, आ जब ऊ लोग आपन देश पा लिहल तब ऊ लोग अपना भाषा आ संस्कृति के जिया दिहल आ आजु इजरायल में सभे हिब्रू बोले ला. अपना में गर्व राखेवाला हर आदमी खातिर ई एगो अनुकरणीय उदाहरण बा. आजु जरुरत बा कि एगो अन्तर्राष्ट्रीय भोजपुरी विकसित कइल जाव जवन भर दुनिया में पसरल भोजपुरिहन के एकसूत्र में जोड़ सके.