अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

छोटा सा जिनगी संभाले में

छोटा सा जिनगी संभाले में हमार दम निकल गईल,
हम त बजवलीं चुटपुटिया, ससुरा बम निकल गईल.

पिछला जनम के बात बा बावन बीघा पुदिना बोआत रहे,
सौ लोगन के परिवार में सबकर चेहरा खिलखिलात रहे,
बड़ लइका ही वारिस होखी के बात हमरा के ना लागल,
आपन वर्चस्व देखावे खातिर कहलईलीं घर से भागल,
धीरे धीरे ईहे रोगवा घर में सबकरा के लाग गईल,
सौ लोग के परिवार के संख्या बस दू में सिमट गईल,
छोटा सा जिनगी संभाले में हमार दम निकल गईल.

कुछ अईसने हाल आजकल समाज के भी हो रहल बा,
खुद के पुजावे खातिर हर केहु राम आ रहीम हो रहल बा,
हमहुँ अईजगे बानी पर हमके पिछलका किस्सा याद बा,
परिवार तऽ टुटिये गईल समाज ना टूटे ईहे फरियाद बा,
कलयुगी राम रहीम के देख के बस करेजा दहल गईल,
ना रहिये राम आ रहीम सोचते हमार दम निकल गईल,
छोटा सा जिनगी संभाले में हमार दम निकल गईल

छोटा सा जिनगी संभाले में हमार दम निकल गईल,
हम त बजवलीं चुटपुटिया ससुरा बम निकल गईल.