अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

पुत्र मोह में जब जब केहु

पुत्र मोह में जब जब केहु आन्हर हो गईल,
हस्तिनापुर के वैभव इन्द्रप्रस्थ पहुँच गईल.

केहु रहे जेकरा भीतर जलनखोरऽही भरल रहे,
शकुनि के बहकावे में आके सब मुतमईऽन रहे,
दुर्योधन कऽ बजर सा देहिंयाँ माटी हो गईऽल,
पुत्र मोह में जब जब केहु आन्हर हो गईल,
हस्तिनापुर के वैभव इन्द्रप्रस्थ पहुँच गईल.

ई नईखे कि हस्तिनापुर महारथियन के भुखाईल रहे,
पर धृतराष्ट आगे भईया सबकर अँखिया मुदाईल रहे,
भीष्म द्रोण के शौर्य पराक्रम सब कहनी हो गईल,
पुत्र मोह में जब जब केहु आन्हर हो गईल,
हस्तिनापुर के वैभव इन्द्रप्रस्थ पहुँच गईल.

ई कहनी त सतयुग के बा अब आईल बा कलयुग,
धृतराष्ट के कान्हा चढ़ के डोल रहल बा नवयुग,
कुरुवंश के कहनी अब तऽ घर घर पहुँच गईऽल,
पुत्र मोह में जब जब केहु आन्हर हो गईल,
हस्तिनापुर के वैभव इन्द्रप्रस्थ पहुँच गईल.

पुत्र के बदला चाहत हो गइल नाम दियाईल झूठी शान,
ओकरा अउर संस्कृति के आड़ में खुल गइल कई दुकान,
दुकान के चलते सब केहु बस कमाई में लाग गईऽल,
पुत्र मोह में जब जब केहु आन्हर हो गईल,
हस्तिनापुर के वैभव इन्द्रप्रस्थ पहुँच गईल.

अइसन नइखे आज जमाना दुर्योधन से भरल बा,
पार्थ बिना अर्जुन का करिहन ई सवाल विरल बा,
इहे कहब हम घुन के साथे गेहुँओ पिसा गईल,
पुत्र मोह में जब जब केहु आन्हर हो गईल,
हस्तिनापुर के वैभव इन्द्रप्रस्थ पहुँच गईल.

पुत्र मोह में जब जब केहु आन्हर हो गईल,
हस्तिनापुर के वैभव इन्द्रप्रस्थ पहुँच गईल.