अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

कविता

बदलते भारत के तस्वीर में

बदलते भारत के तस्वीर में एगो नया रूप देखाईऽल बा,
अब अस्सी देशन कऽ अगुऽवा बने कऽ राह खुलाईऽल बा।।

होत पहिले भी रहे पर अपना संस्कृति के हिस्सा ना रहे,
बस गाहे बगाहे चटखारा लेबे वालन के जेब के किस्सा रहे,
बुझा ही गईऽल होखी कि ईशारा केकरा पर कराईऽल बा़
बदलते भारत के तस्वीर..।

बेटवा जान ना दे दे डर से ओकर बियाह सम्पन्न हो गईल,
मुँह देखाई पर भीड़ देख सबकर हाथ पैर फूऽल गईऽल,
मूँछ वाला दुलहिन बिया सोच के जमाना से लजाईऽल बा,
बदलते भारत के तस्वीर..।

लईऽकन के करनी देख लइऽकिनो के आत्मा जाग गईऽल,
रामकली के बियाह कलावती से धूमधाम से हो गईऽल,
लइका लइकि एक समान के नारा एहिजो पूराईऽल बा,
बदलते भारत के तस्वीर..।

कुछ लोग बा जिनका न्यायपालिका के फरमान ना पचल,
हमनी के बरदास्त नईऽखे पश्चिमी सभ्यता के फूहड़ रचऽल,
कईऽसे बताईं कि नरको में ठेला ठेली एही के कहाईऽल बा,
बदलते भारत के तस्वीर..।

एह काम के सकारात्मक पहलु खातिर सब हो जाऽ तईयार,
बढ़त जनसंख्या पर लगाम खातिर रहता बा सबसे बरियार,
ना होखी बटँवारा खातिर अब भाईऽ भाईऽ में कब्बो झगड़ा,
लईऽकिन के मुहँ काला होखे से बचावे कऽ ईलाज बा तगड़ा,
नाहि जलावल जाईऽ अब कबो दहेज खातिर केहु मासूम,
बलात्कारी ही होखे लागी अब बलात्कारी के खाऽतून,
ई कहनी तऽ बस समझ में आवे वाला खातिर कहाईल बा,
बदलते भारत के तस्वीर..।

बदलते भारत के तस्वीर में एगो नया रूप देखाईऽल बा,
अब अस्सी देशन कऽ अगुऽवा बने कऽ राह खुलाईऽल बा।।