अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

कविता

घुरहू चच्चा

सब के सब काम करे कऽ रोग लग रहल हौ,
आजकल भईया राजा भी भिखारी हो रहल हौ.

चलत राह मिल गइलन घुरहू चच्चा,
पयलगी करे पर कहलन जीयऽ बच्चा.
उनकर ठाठ देख हमसे ना रह गयल,
का करत हउआ अब पूछाइये गयल.
कहलन हम त बहुधन्धी हो गयल हईं,
सेहरा अउर कफन दूनो बेच रहल हईं.
कब्बो पड़ जाला गर सूखा आ अकाल,
हमरे दिमाग में मच जाला भारी बवाल,
अमीरन के जूठन से कमाई हो रहल हौ,
सब के सब काम.... .

एतना सुन के हमार सर चकरा गयल,
ई सब देख के उनके हँसी आ गयल.
ई कईसे संभव हव, कईली हम सवाल,
हमार सवाल ही बन गयल एक बवाल.
कहलन मुलाकात हो गयल एक नेता से,
सबके आगे दंभ भरे वाला अभिनेता से,
गरीबन के पईसा से मूर्ति गढ़ रहल हौ,
दलालन क धंधा चौपट कर रहल हौ,
यही सब देख हमार आँख खुल रहल हौ,
सब के सब काम.... .

सब के सब काम करे क रोग लग रहल हौ,
आजकल भईया राजो भिखारी हो रहल हौ.