अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

कविता

घुरहू चच्चा (भाग दू)

कइसे कही चच्चा पगला गइलन,
इंसान कहले पर झुँझला गइलन.

कहलन, इंसान मत कह बचवा,
इंसान के मार देले हव लकवा.
हर काम उल्टा कर रहल हव,
पानी में लाठी पीट रहल हव,
पुछली कहँवा टूट गयल पहाड़,
बिना माइक के दिहलन दहाड़,
दुनिया भर कऽ कहनी शुरु कइलन,
कइसे कही चच्चा पगला गइलन.

हर कोई कर रहल हव भ्रष्टाचार,
नाम दे के कलयुग क सदाचार,
अधिकार क बात सबके याद हव,
कर्तव्य क नाम बस मवाद हव,
रिश्वतखोरन से सब हव परेशान,
रिश्वत देके हक मारल हव आसान,
एतना सुनवले पर भी चैन नाही पइलन,
कइसे कही चच्चा पगला गइलन.

नेता, सिपाही, दरोगा केकर ली नाम,
रिश्वत के नौकरी क ले रहल हव दाम,
जनसेवक लोगन क भी हो जाये अब बात,
भोजन में दे रहल हउवन मेंढ़क क सौगात,
सोचा यदि आज गाँधी नेहरू जिन्दा होतन,
कई बटँवारा क लाँछन झेल रहल होतन,
गरियाना पुराण क पिटारा खोल दिहलन,
कइसे कही चच्चा पगला गइलन.

कइसे कही चच्चा पगला गइलन,
इंसान कहले पर झुँझला गइलन.