अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

कविता

हे मुरलीधर किशन कन्हैया

हे मुरलीधर किशन कन्हैया,
एक बार तू फिर से आ जा.
धरम क नगरी डोल रहल बा,
आ के, ओकरा पार लगा जा.

गोपीयन संग रास रचवलऽ,
कंस क चलते गोकुल छोड़लऽ.
अब त सब कुछ उलट रहल बा,
गोपीयन के सब लूट रहल बा.
आपन धाक जमावे खातिर,
गली गली में कंस भरल बा.
आ के आपन शंख बजा जा,
हे मुरलीधर किशन कन्हैया,
एक बार तू फिर से आ जा.

धरम युद्ध क सारथी बनलऽ,
गीता के उपदेशो दिहलऽ,
फेर से ऊ संग्राम छिड़ल बा,
कुरुवन से सगरी विश्व भरल बा,
पांडवन क पहिचान के खातिर,
पूरा जीवन दूभर भइल बा.
आ के सबके आँख दिखा जा,
हे मुरलीधर किशन कन्हैया,
एक बार तू फिर से आ जा.

हे मुरलीधर किशन कन्हैया,
एक बार तू फिर से आ जा.
धरम क नगरी डोल रहल बा,
आ के, ओकरा पार लगा जा.