अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

कविता

पन्द्रह अगस्त

पन्द्रह अगस्त पर लिखे क फरमान आ गइल,
तिरंगा के देखते देशभक्ति के अरमान जाग गइल.

कहाँ से शुरु करीं कुछऊ समझ में नइखे आवत,
देश क हालत देख कलम के समझा नइखीं पावत.
कुछऊ लिखला पर छूरी खरबूजा वाला बात हो जाई,
छूरी खरबूजा केहु गिरे, शामत खरबूजे के आ जाई,
कुछऊ होखे, शुरु ओहि फरमान से कर रहल बानी,
कुछ लिखला क पहिले आपन सवाल कह रहल बानी,
ई खयाल अवते दिल के बत्ती खुद से जगमगा गइल,
पन्दरह अगस्त पर.....

एक बार फिर से देशभक्ति क पाठ पढ़ावल जाई,
तिरंगा क चाशनी में सबके फिर से नहावल जाई.
चाशनी के मिठास के हम नइखी बतावत कोई दोष,
एकरा में नहा के आज द्रोही भी हो जाई सरफरोश,
जवना तेजी से द्रोहियन क इजाफा हो रहल बा,
चाशनी के खतम होखे क डर, हमरा सता रहल बा.
अइसने द्रोहियन के पहिचाने क समय आ गइल,
पन्दरह अगस्त पर.....

हमरा त बस एगुड़े बात कहे के बा सही सही,
पेट हो भूखल तब देशभक्ति क गीत कइसे कही?
चाशनी मे डुबोवे क पहिले ओमा कुछ मिला द,
बाद में, घूसखोरन बेईमानन के डाल के, हिला द.
निकलला पर चाशनी से खुद के केतनो चाही छोड़ावे,
फेविकोल के जोड़ जइसन केहू भी छूट ना पावे,
समाज से कचरा हटावे क रस्ता बूझा गइल,
पन्दरह अगस्त पर.....

अइसन होखले पर आजादी के मतलब बूझाई,
समाज के बेइमानन से मुक्ति क रास्ता मिल जाई.
त भाई लोग कान खोल के सुन लीं हमार बात,
तिरंगा के चाशनी में डुबा के, सबके कर दीं मात.
भ्रष्टाचारी, अफसर, नेता सबके शामिल कर लीं,
अभय वाणी के सब लोग अपना गाँठ मे भर लीं.
शहीदन के सलामी क समय आखिर आ गइल,
पन्दरह अगस्त पर.....

पन्दरह अगस्त पर लिखे क फरमान आ गइल,
तिरंगा के देखते देशभक्ति के अरमान जाग गइल.