अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

खुद पर लिखे क मन.

आज हमरा खुद पर लिखे कऽ मन कर गइल,
आईना देखते ही चेहरा कऽ रंगत उतर गइल.

बहत सोचला पर भी एगुड़ो अच्छाई ना मिलल,
स्वार्थ के रोटी से भला केकर चेहरा बा खिलल,
माई बाबू के करनी में हरदम देखाइल रहे फर्ज,
बिटवन से तिरस्कृत होके उतारत बानी हम कर्ज,
वक्त के आन्ही में भईया सब कुछ बिखर गइल,
आज हमरा खुद पर लिखे...

आपन करनी सबपर थोपे खातिर तैयार रहलीं,
केहु माने ना माने गरियाये खातिर बरियार रहलीं,
हो गइल बानी आज कहीं अन्धेरा में हम गुम,
जिन्दगी कऽ हाथी निकल गइल अटकल बा दुम,
भेड़िया आइल चिल्लाये में जिन्दगी कतर गइल,
आज हमरा खुद पर लिखे.....

आज हमरा खुद पर लिखे कऽ मन कर गइल,
आईना देखते ही चेहरा कऽ रंगत उतर गइल.