एकता

डा॰ अशोक द्विवेदी

धुनल रूई के फाहा उड़ि के
जइसे एने-ओने छितिरा जाय
जइसे संतरा
फाँक-फाँक हो के
आराम से अलगिया जाय
हमनी के एकता
अनेकता में बा!

जरूरत पड़ला प हमन कुछ ना बोली
अन्याय भइला पर मुँह ना खोलीं
हमन का एह महान गुन के
कूल्हि सरकारी महकमा बूझेलन स.
तबे नू
एगो, सँउसे शहर के
डिठारे मुँह बिरावेला.
एगो, धीरे-धीरे
सबके लूल बनावेला
एगो, डालेला रोज खुलल आँखि पर
करिया परदा
एगो, फइलावेला अनहद धुआँ गरदा
कानून बेवस्था के
अतना चउकसी बा
कि केहू के गरदनिया के ढकेल देला
कवनो सहस्रबाहु
कतार में आगा से पाछा ठेल देला!
ऊँचाई से गिरत पानी के धार
जइसे पत्थल पर परते छिटा जाले
हमनी के सोझबक एकता
हो जाले छिन्न-भिन्न.

मुसीबत में बड़-बड़ के हेरा जाले
अकिल, ‍फेर एकता के
रटल-रटावल गीत कस ना भुलाव?
छोट-छोट लोगन का सोझा
अचके आके खाड़ हो जाला जब
कवनो बाहुबली ताड़ नियर
खंबा अस अड़ जाला जब
कवनो माफिया, करिया पहाड़ नियर.

हमहन के एकता
ओघरी देखे लागेले
आपन-आपन मतलब
नफा-नुकसान!