आपन दोष

डा॰ अशोक द्विवेदी

प्रकृति, देवता आ आदमी
तीनू रहलन स बेबस
बेर बेर बनल
बेर बेर उजड़ल दुनिया
बाकिर आपन दोष केहू ना सकारल
ना प्रकृति, ना देवता, ना आदमी.

जवन भइल तवन भइल
बाकिर आदमी के पूजा आ संघर्ष
जारी रहे, अनथक, अबाध
पसेना आ खुन से
सींचत चलि आइल आदमी
प्रकृति के मनमाफिक बनावे खातिर
देवता के रिझावे खातिर
आदमिये रहे
जवन कइलस
बेपनाह प्रेम
आ घृणा अन्तहीन
कबो खुश भइल
कबो दुखी
बाकिर हर परलय
हर विनाश का बीचोबीच
आदमिये रहे साखी
परलय आ विनाश के
आदमी बनवलस इतिहास
कबो इनके कबो उनके
कबो परिस्थिति के ठहरवलस दोषी
बाकि केहू ना सकारल आपन दोष
ना प्रकृति
ना देवता
ना आदमी.