कबले ओइसन दिन आई

डा॰ अशोक द्विवेदी

कबले ओइसन दिन आई
कि जेकर जेतना
ओतना पाई !
राम दोहाई ! राम दोहाई !!

साहेब का कुक्कुर के चाहीं
बटर लगावल रोटी.
अंडा, बिना नून के, अउरी
ताजा काटल बोटी.
अदिमी, बुझला देखि-देखि के
सूखल ओंठ चबाई ! राम दोहाई ! राम दोहाई !!

काल्हु किरासन, परसों चीनी
नरसों खाद बँटाई.
पिन्सिन आ आवास मिली
कुछ दिहले पर, फरियाई.
बिछिली भइल सभत्तर बाबू
जे जाई, ऊहे बिछिलाई, राम दोहाई ! राम दोहाई !!

बढ़ल रेट बा मजदूरी के,
लूटल-बेर्हल जारी.
मुखिया कुल भुगतान करी,
आई पइसा सरकारी.
गारंटी बा रोजगार के
आधा मिली, न पूरा पाई ! राम दोहाई ! राम दोहाई !!

कम मेहनत में अधिका आमद
वाला चाहीं काम.
छूट मिलो, अनुदान मिलो,
आराम मिलो आ दाम.
दियवाई जे अइसन तइसन
ऊ, ओमे आधा अधियाई ! राम दोहाई ! राम दोहाई !!

हमनी के बा डाढ़ा लागल,
चिचिरी खींचल भाग.
पाथर वाला आन्ही-पानी,
आग-भउर के राग.
दइब बिगरलें करम पहिलहीं
ऊपर से राउर ठकुराई ! राम दोहाई ! राम दोहाई !!