गाँव खामोश बा.

डा॰ अशोक द्विवेदी

एने कई दिन से
गाँव खामोश बा.
मनगुपुते कुछ सोचत
फिकिरमंद
आ कि भितरे-भीतर खदकत बा
पाकत फोड़ा लेखा.
बाकिर चुप बा गाँव
एघरी!

अँगुरी प दिन गिनत
बूढ़ हो चलल बा
बीच के अदिमी.
दयाद-पटिदारन से खार खइले,
बनियन के उधार खइले,
नीचे मूड़ी लटकवले.

राजनीति
हर नीक काम में
डाल देले बिया बिघिन.
केहू हेने जाता
त केहू होने.
कुछ लोगन क बाह-बाह
कुछ खातिर आहि-आहि.
परधान, ब्लाक परमुख, मेंबर
सिकरेटरी,
सबकर दाल गलत बा
थोर-बहुत.

सुक्खू रेडियो बजावल छोड़
अब टीवी देखत बाड़न चमटोल में
बलब का अँजोरा.
लेहना काटत बाड़न स बेटा-पतोहि.
गाइ-गोरु फेंड़ा तर आ
ओसारा में नाती-नातिन
हाहा-हीही
एक लेखा मउज बा सक्खू राम के.

बीच के आदमी
बुतात कउड़ लकड़ी से खोरत बा.
बचवा भा बुचिया खातिर
कुछऊ नइखे बँचल ओकरा पास.
सिवाय दू बिगहा खेत, पांच बोरा धान
आ एक बोरा गेहूँ के.
पढ़ाई के फीस देव कि
कहँरत मेहरारू के दवा बिरो करावे,
कि बचिया के बियाह खातिर
पइसा जुटावो !

चउधुरी के दुआर मनसायन बा,
ग्रामनिधि आ रोजगार गारंटी के
चभिये बा उनका तकिया तर.
लोग ओइजे जमल बा
बीड़ि फुँकाता
सुर्ती ठोकाता.
अहरा सुनगा के
बन रहल बा घाठी-लिट्टी.
मुरगा के इंतजाम फरका बा.

बीच के अदिमी ससुरा
ना ओनिये के ना एनिये के.
कूल्हि ठसक आ इमानदारी
केने दो घुसुर गइल बा.
शहर से मनिआर्डर आइल बन्न हो गइल.
बेटा अपना मेहरिये से तंग हो गइल.
सरवा बाप-माई
भाई-बहिन का देखी?
एक लेखा ऊहे लचार
सबसे बेकार बा!
रेक्सा चला ना सके
दोकान-दउरी के बेंवत नइखे
तीन-पाँच के लूरे नइखे
रोजगार खातिर अनफिट बा.

संतोख अतने बा
कि गाँव अपना में अझुराइल
अपने में परेशान
अपने में मगन.
अतने में गील
कि हिनिके उड़ा देब!
हुनुके भठा देब!
उनकर मामर हेठ करब!
बहुत जल्दिये गोटी सेट करब!!