साठ बरिस बीतल

डा॰ अशोक द्विवेदी

साठ बरिस बीतल
अब्बो से कुछु खयाल करीं.

 

मत खोजीं रगरा-झगरा
मत जीयल काल करीं.
साठ बरिस बीतल
अब्बो से कुछु खयाल करीं.

 

नोंच-चोंथ के खा गइनी सब
कुछऊ ना बाँचल.
डर से रउरा पटा गइल सब
ना बूझल-जाँचल.
पिण्ड छोड़ दीं अब्बो से
मत अँखिया लाल करीं.

 

जतना जुरल, न आँटल ओमे
जुटल न लुग्गा-लत्ता.
हमनी खातिर सबुर के थरिया
रउरा खातिर सत्ता.
बकरी बनल लोग मिमियाता
रोज हलाल करीं.

 

डाँड़-मेंड़ से नाद चरन ले
अनखुन ए सरकार.
महुआ, इमली, आम न चाहीं
सुबहित रहे दुआर.
अझुरावल रउरे, सझुराईं
मत बेहाल करीं.

 

साठ बरिस बीतल
अब्बो से कुछु खयाल करीं!

मौसम के हाल

हवा भइल हाँफत-हिरन, तवे नखत मृगडाह
तातल पतई बिरिछ के, ना जुड़वावे छाँह.

ताल उपासल जल बिना, नदी भइल बेजान
अँटकल आके कंठ में, आकुल-विकल परान.

- डा॰ अशोक द्विवेदी