अन्हरन के हाथी

आलोक पुराणिक

साँच सिरिफ घोटाला हऽ बाकी सब घोटाला के तईयारी. सत्यम के फर्जीवाड़ा के जांच आन्ध्रा प्रदेश के पुलिस जवना तरह से कर रहल बिया, ओकरा से इहे साफ हो रहल बा कि फर्जी घोटाला के जांचो फर्जिये बा. अधिका फर्जीवाड़ा के कवन बा, इ त बाद में पता चली. अबहीं त फरजी से फरजी से मिले कर कर लमहर हाथ टाइप मामिला लउकत बा. खैर, पूरा फर्जीवाड़ा के शुरुआती खास बिंदु एह तरह से बा

१. कानून के हाथ लमहर होला, आ कई गो होला. ओने से सेबी के हाथ चलल एने से कारपोरेट मंत्रालय के हाथ निकल चलल, ओने से पुलिसो आपन हाथ अजमावे चहुँप गइल. एहि तरह अतना हाथ हो जाला के कन्फयूजन जइसन हो जाला. घोटाला सेंट्रलाइज्ड होला बाकिर जांच कई हाथन का हाथ में चल जाला. आ कई हाथन के जांच अन्हरन के हाथी जइसन हो जाले. केहू खालि पूंछे के हाथी मान ली, केहू सूँढ़ के हाथी मान के हल्ला मचा दी. हाथी मुसकुरात रही.

२. खबर बा कि सत्यम के चीफ घपलेबाजी मुसकुराये का मूड में रहलन तबहियें त हैदराबाद जेल में पढ़े खातिर कामिक्स के मांग कइलन. फेर एकदम से बुद्ध के दर्शन के किताब पढ़े लगले. कुछ दिन बाद हो सकेला कि राजू सत्यम के शेयरधारकन से कहत पावल जासु कि का तोरा, का मोरा. सब एके हऽ. तहार रकम हमार हो गइल आ हमरा रकम के मत पूछऽ. माया महाठगिनी हम जानी. ई दुनिया फानी हऽ रकम आनी जानी हऽ. संसार दुख हऽ शेयर में पइसा लगावल आउरी बड़हन दुख हऽ. दुख के उपाय बा. उपाय इहे बा कि आपन रकम हमरा के दे दऽ, जब रकमे ना बाची त भोग के लालसो ना बाची.

३. गुरु राजू के ई सन्देश बा कि सगरी रकम सत्यम में डाल के कंगला, धनहीन, फक्कड़ होके बेटा तू सिरिफ दाल आ रोटी के चिन्ता भर करे लायक रह जइबऽ. तब तोहरा के काम, क्रोध, लोभ, मोह जइसन दुर्गुण परेशान ना करी. कातर आवाज में भगवान के नाम पर दे दऽ कहत जब तू भीख मँगबऽ त क्रोध तहरा लगे फटकबो ना करी. तू दिन रात चार छह गो रोटी का जुगाड़ में बिजी रहबऽ, नोट के लोभ करे के टाइमे ना रही तहरा लगे, आ काम के त भुलाईये जा. जब भूखाइल पेट टहलब त रोटी से सुन्दर केहू ना लउकी. एहसे बेटा सत्यम में रकम गँवा के तू सदाचार के मार्ग पर फुल स्पीड से दउड़े लगबऽ. ४. खैर लेटेस्ट इ बा कि भूतपूर्व गृहमंत्री शिवराज पाटिल परेशान बाड़न कि काश ई घोटाला कुछ दिन पहिले हो गइल रहित त कम से कम उनुका लगे कहे के होइत कि उनुका सूट सहित निकम्मापन के कोसेवाला लोग देख लेव कि सगरी नुकसान सूट वाला निकम्मे ना करसु, सूट वाले बहुते एक्टिव हो जासु त सत्यम हो जाला.

इहे शिवम् इहे सत्यम !


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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