काश राजू तू तबहूं होखीतऽ..

आलोक पुराणिक

सत्यम के राजू अगर पहिलहूं रहतन, बहुते पहिले आ बार बार होखतन त ढेरहन कहानी बदल गइल रहती स. कहानियन में राजूइ पेंच आ गइल रहित. अइसनका राजूइ ट्विस्ट वाली कुछ कहानी एह तरे होखती सन....

कहानी नंबर एक- नकली सोना, नकली सेना

रावण राम से युद्ध का तइयारी में अंहकार से फूल रहल होखित.

आपन संपत्ति के हिसाब किताब लगावत रहित कि लड़ाई के ओकरा मंजिल तक चहुँपावे खातिर हतना संपत्ति के जरुरत पड़ी. लंका में हतना सोना बा, हतना चांदी, ईहे सब हिसाब हित रहित. ५२ हजार सैनिक बाड़न आ एहि लोगन का बूते लड़ाई लड़ल जाई.

रावण दरबार में अपना सोना का बारे में, अपना सेना के बारे में घोषणा करे खड़ा होखतन तले लेखपाल राजू खड़ा हो के कहित,
माफ करीं, दशानन. लंका में सोना हइले नइखे. हम कई साल से रउरा के फर्जी हिसाब देखलावत रहनी. हम सोना बेच के अयोध्या में ढेरे जमीन खरीद लिहले बानी. दशानन लड़ाई लड़े लायक संपत्ति रउरा लगे नइखे नू.

तबले दोसर राजू सेनापति उठ खड़ा होखित आ कहित,
दशानन, सांच कहीं त पहिले बतावल बावन हजार सैनिक नइखन असल में चालीसे हजार बाड़न. आ सांच कहीं त एहू पर सन्देह बा. हे दशानन, असल में कुछुवो पक्का नइखे..

रावण भहरा जाइत ई सुन के. ना सोना बा ना सेना.

अहंकार के जवाब बावे.... राजू.

एह कहानी से हमनी के सीख मिलत बा कि हर समरथ दरबार में दू चार गो राजू रहसु, त घमण्ड करे के मौके ना आई.

काश राजू तू तबहूं होखीतऽ..

कहानी नंबर टू - एने त हइये नइखन.

कौरव पाण्डव में युद्ध के तइयारी चलत रहित.

पांच गो पाण्डवन का सोझा एक सई कौरव. पाण्डव लोग टेंशन में रहित.

कौरव फुल कान्फीडेंस में रहितन कि जीत गइनी सन अब तऽ. पांच गो पांडवन के पीटे में टाइमे कतना लागी !

तबहिये हस्तिनापुर के गृहमंत्री राजू उठ खड़ा होखितन आ बतलवतन,
हे धृतराष्ट्र, रउरा लउके ला ना से हम रउरा के झूठहूं बतला रखले रहीं कि सौ गो कौरव बाड़न. खजाना में से सौ गो कौरवन के खाये पिये, टीए डीए के रकम पचावत जात रहीं. बाकिर अबहीं जब असली जंग के टाइम आ गइल बा त बतलाइये देत बानी कि हमनी का लगे बेकत हइये नइखन.

धृतराष्ट्र पुछत बाड़न, काहे ? दुर्योधन दुशासन नइखन जा का ?

गृहमंत्री बतलवतन, बस ईहे दू जने. सांच बाति त ई बा कि सौ गो कौरव के नाम कतहीं कवनो डाकुमेंट में दर्ज नइखे. बड़ से बड़ विद्वानो ना बतला सकस सौ के सौ कौरवन के नाम. बताईं बा केहू का लगे सौगो कौरवन के नाम ?

भरल सभा में सभे बोल उठित, ना हमरा लगे त नइखै सौ कौरवन के नाम.

धृतराष्ट्र दुर्योधन निराश हो जइतन आ महाभारत ना होखित. अतना तबाहियो ना होखीत.

काश राजू तू तबहूं होखीतऽ..


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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