चिरकुट निरपेक्ष एटीएम

आलोक पुराणिक

नयका बस्ती का लड़िकन से आदर्श जीवनसाथी का बारे में चरचा होत रहे. लड़िकी सब जे अपना आदर्श पति के खाका खिंचली स त एटीएम के झलक लउकल ओहमें.

दिन रात हरमेस नगदी लिहले हाजिर, कवनो सवाल ना, कवनो चांय चांय ना, चौबीसो घंटा सेवा में हाजिर रहे वाला. लड़िकनो के राय एही से मिलत जुलत रहुवे, ओकनियो के बतौर जीवनसाथी एटीएम लेखा कुछ पसन्द रहुवे.

एटीएम अब सिरिफ एटीएम नइखे रहि गइल, संबंध के आइना जस बन गइल बा. खैर, ई खाकसार एटीएम के कुछ आउरी फायदा तलशले बा. हाजिर बा ..

1- एटीएम का सबले बड़ फायदा ई बा कि एकरा से पइसा निकाले खातिर रउरा बिना नहइलो जा सकीलें. बैंक वइसे त अइसनका कवनो बंदिश ना लगावेलें, बाकिर सात दिन बिना नहइले ओहिजा घुस जाईं त राउर हुलिया देख के बैंक वाला अतना जल्दी राउर काम निपटइहन कि लागो कि कहल चाहत बाड़न स कि चल फूट एहिजा से! जल्दी जो! अब दस मिनट के काम एक मिनट में हो जाव त बंदा त बेइज्जत महसूस करे लागी.

एटीएम अइसना कुछ ना करे. आ नहा के जाईं तब, बिना नहइले जाईं तब हर हाल में एके जइसन बेवहार करी रउरा साथे. मतलब कि स्नान निरपेक्ष होल एटीम.

2- पूरा बेशरम होके अपना खाता के आखिरी रुपिया तक एटीएम से निकालल जा सकेला. अइसनका बैंक में कइल तनी मुश्किल होला. सामने काउंटर पर बइठल आदमी रउरा के हिकारत से देखी आ बोली कि खाली सत्तर रुपिया चालीस पइसा बैलेंस बाँचल बा तोहरा खाता में.

अब ओकरा से ई कहे के हिम्मते ना होखी रउरा कि त सत्तर रुपिया त देइये दीहीं. एटीएम अइसनका कुछ ना करे. ऊ त झटका में नोट गिन दीही आ फेर ट्रांजेक्सन स्लिप का मार्फत कही - थैंक्यू डीयर कस्टमर. सत्तरो रुपिया खींच निकाले वाला कस्टमरो वैल्यूड, डीयर, रेसपेक्टेड होला एटीएम खातिर. सत्तर रुपिया भा सत्तर लाख रुपिया वाला सबसे एके जइसन बेवहार करेला एटीएम. कम शब्द में कहीं त एटीएम चिरकुट निरपेक्ष होखेला.

3- जवना फक्कड़ हालात में मेहरारुओ ईज्जत करे से नकार दी ओहू में एटीएम बरोबर सम्मान देला, डीयर, वैल्यूड आउर रेसपेक्टेड कस्टमर कहले. आत्म सम्मान, सेल्फ रेसपेक्ट जवना घरी कम बांचल होखे ओह दिना में एटीएम जाके बैलेंस पूछ लेबे के चाहीं. डीयर वगैरह होखे के अहसास बनल रही. बलुक इहो कहल जा सकेला कि बड़ बड़ चोट्टवन के इज्जत खातिर एटीएमे के सहारा बा.

महीना क आखिर बा. पाकिट से लेके बैंक बैलेंस तक निल बटा सन्नाटा बांचल बा. रेसपेक्ट क मार्केट डाऊन बा. चलीं अब आपन आत्मसम्मान बढ़ावे खातिर तनी एटीएम का ओरि निकलीं.


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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