२००९ का शुरूआत में

आलोक पुराणिक

डरल जरूरी बा
काहे कि कसब बा.
डरल जरूरी बा
काहे कि मौत के एकसे बढ़ के एक सबब बा.
डरल जरूरी बा
काहे कि बमन के पूरा तईयारी बा.
डरऽ एह से कि पड़ोस में जरदारी बा.
डरऽ कि उमेद अगर कवनो बा त लउकत नइखे.
डरऽ कि अब त झूठो के सांच सुनात नइखे.
डर जा अतना कि डरो के सिवान पार कर जा.
फेर उठऽ आ कहऽ कि आवऽ डर,
अब तोहरा से आँख चार कर लिहल जाव.
बाकिर ओहिजा ले चहुँपे से पहिले कई गो पहाड़न से गुजरे के होखी.
गीदड़न के दहाड़ बनल कई गो बमन से गुजरे होखी.
डर का डेरा से पार जाये का तईयारी में लागल बानी,
२००९ का शुरूआत में एही से सिरिफ डरत बानी सिरिफ डरत बानी.


एकरा जवाब में काकेश कुमार लिख मरलन कि -

हँसल जरूरी बा,
काहे कि जिन्दा बानी.
हँसल जरूरी बा काहे कि अतनो पर ना शर्मिन्दा बानी.
हँसल जरूरी बा काहे कि देश अभीयो चल रहल बा.
भलहीं नफरत का आग में जर रहल बा.
हंसी कि नयको साल में उहे पुरनका बादा बा.
हँसी कि हमनी का अभियो उहे प्यादा बानी.
हँसी कि हमनी का बिना मंजिल के जियत जा रहल बानी.
हँसी कि अपना गम के फेर से पी रहल बानी.
हँसी कि फेर नया साल आईल बा.
शुबकामना लेबे देबे के मौसम ले आईल बा.
अपने के खबर नइखे, बाकिर राउर सलामती के दुआ करत बानी.
हँसी कि हम अभियो अपना दुआ पर भरस करत बानी.
एही से नयको साल में हम फेर ओहि काम में फँसत बानी.
खुदा खैर करसु,
२००९ का शुरुआत में एहीसे सिरफ हँस रहल बानी.


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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