अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

धारावाहिक कहानी

गमछा पाड़े

"पंडितजी आफिस में बइठल‍-बइठल अखबार पढ़त रहुवन कि बाजार गईऽल ठलुआ बहरे से खुसखबरी बा, खुसखबरी बा, चिल्लात आफिस में ढ़ुकल. ओकरा हाथ में सब्जी के झोला सब्जी से भरल रहुवे. पंडितजी कुछ जान पइऽते एकरा पहिलही पंडिताइन अईऽली आ ठलुआ के कान पकड़ के भीतर घरि में ईऽ कहत ले गईऽली कि पहिले चल के सब्जी के हिसाब दऽ, आटा गूँथ द, फेर आके खुशखबरी बतावऽ. बेचारे गमछा पाड़े मन मनोस के रह गईऽले आऽ ओह घड़ी के कोसे लगले जब आफिस खोले खातिर पंडिताइन के शरत पर मोहर लगवले रहुवन. पंडितजी अखबार पढ़ल भूला के अफनात भईऽल आफिस के कमरा में एने-ओने टहले लगले. ठलुआ के आवे में पूरा एक घंटा लाग गईऽल आ जईऽसे ऊऽ आफिस में दाखिल भईऽल पाड़े जी दरवाजा बन्द कर लिहले अउरी ठलुआ के पकड़ लिहले कि कहीं पंडिताइन आ के फेर से ओकरा के ले मत जास. आखिर ठलुआ के खुशखबरी के बात बहरी आ ही गईऽल बाकि खुशखबरी सुन के पाड़ेजी ठलुआ के अईऽसे छोड़ले जइऽसे नारियल के झाड़ पर से नारियल गिरवले होखन.

"का भईऽल??", कहत जमीनी पर गिरल ठलुआ खाड़ होखत पुछलस तऽ पाड़ेजी दरवाजा खोले के बाद पलट के कहले,

"ससुर के, महादेव के कातिल के जे खोजी ओकरा के ५ लाख रुपया मिली, एकरा में हमरा कवन फायदा कि बहरिये से नरियात भईऽल अईलऽ हऽ."

"कातिल के रउऽआ पकड़ेब तऽ ईनाम का बहरी वाला के मिली? मगर रउऽआ में कुकुर-बिलार आ जूता-गदहा से आगे बढ़े के सहूर होखे तब नऽ." कहत पंडिताईन अन्दर अईऽली आ ठलुआ के फेर से रसोईऽ में चले खातिर ताना मारे लगली.

"बिना बोलवले कहीं जाये में हमरा बेईज्जती महसूस होखेलाऽ." ई कहला के बाद पाड़े जी के चेहरा के आभा देखत बनत रहुवे जेकरा के उऽतारत पंडिताईन के जरको देर ना लागल.

"उऽ बेईऽज्जती भी ५ लाख के होखी बाकि रऊऽआ त कुकुर-बिलार में अझुराईऽल रहीं आ बदला में कबो चाह, चाहे पान से संतोष करत रहीं..... (ठलुआ के बहरी अलंग ढ़केलत)..ईहाऽ का खाड़ बाड़ऽ चुल्हा में चलके रोटी बेलऽ ना तऽ आज खानो ना मिली."

ई कहत पंडिताईन ठलुआ के बहरी ले जाये में तनको देर ना कईऽली. पाड़ेजी गंभीरता से सोचे लगले आ टेबल पर से पान उठा के खईऽला के बाद बुदबुदाये बिना ना रहले.

"पंडिताईनो कबो कबो समझदारी के बात करिये देली... घबरा मत महादेव बाबू, अब तोहार कातिल जल्दिये हमरा कब्जा में होखी..."

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महादेव बाबू के बँगला (कोठी) पर रिश्तेदारन आ महादेव बाबू के इकलौती वारिस ममता के बीच में पारिवारिक मीटिंग चलत रहुवे. सब केहु ममता पर महादेवजी द्वारा तय कर दिहल बियाह करे खातिर जोर देत रहुवे. ममता के बियाह से एतराज ना रहे काहे से कि महादेव जी ममता के बियाह ओही से तय कईऽले रहुवन जेकरा से ममता चाहत रहली. बाकिर उनकर दिली इच्छा कहत रहे कि जबले ओकरा बाबा के कातिल के पता ना चल जाईऽ, उऽ बियाह ना करी. ममता के सामने अजीब दुविधा रहे आ ईऽ दूर ना भईल रहीत जदि ओकरा होखे वाला दुलहा आ प्रेमी राजन ऊहाँ ना आईल होईत.

"ममता ठीक कहत हौ. अब हम लोग बियाह तब्बे करब जब बाबा के कातिल पकड़ा जाईऽ." कहत के राजन जब बइठका में घुसल तऽ ममता के जान में जान आ गईल. सब केहु आश्चर्य से राजन के देखे लागल.

"जवाँइ बाबू ईऽ का कहत हउऽआ..., तोहें तऽ मालूम हव कि बाबूजी ममता के बियाह हाली से हाली कर देबे चाहत रहन." ममता के बुआ राजन के समझावे खातिर कुछ कहे लगली तऽ राजन उनकरा के बीचे में टोक देत बा.

"हम जानत हईऽ बुआजी लेकिन अब बाबा नाहीं हउऽअन. फेर एक साल तक तऽ वईसहीं रुके के पड़ी. हमके पूरा यकीन हौ कि कातिल के पकड़ में आये खातिर एतना समय बहुत हौ."

राजन के बात सुन के बुआजी अउरो कुछ कहती ओकरा पहिले ही पाड़ेजी ठलुआ के साथे नाटकीय अंदाज में प्रकट होके सबके चौंका दिहले.

"सही कहत बानी पाहुन. बियाह खातिर तऽ साल भर रुके के ही पड़ी बाकि जदि रुके के कारन महादेव बाबू के हत्यारा के पकड़ल बा तऽ हम आप सभके भरोसा दिआवत बानी कि महादेव बाबू के हत्यारा सात दिन का भीतरे हमरा मुठ्ठी में आ जाईऽ."

पहिलका भाग खतम


A reader comments :
भगवान करे सफलता के नूर रउवा पर बरसे !
हर केहू रउवा रचना पढ़े के तरसे !!
राउर मेहनत एतना न रंग लाये !
की पीछे मुड के कबो देखे के नौबत ना आये !
अगर दोसर केहू जरे त जरते रह जाये !!

नूर आलम बादशाह
दोहा - कातर