शरत शोभा

डा॰कमल किशोर सिंह


बीतल बरसतिया के दुखवा दरदवा, देखऽ हो बबुआ!
कइसन शोभेला शरदवा, देखऽ हो बबुआ!


राम लक्ष्मण से ई कइले बिबरनवाँ,
जब बने बने खोजत रहलें सीता के ठीकनवाँ,
आ सूतल सुग्रीव भूल गइल आपन वादवा, देखऽ हो बबुआ!


धरती धदइले धारि हरियर परिधनवा,
सुन्नरी सजेली जइसे करि असननवाँ.
निहारेला निशदिन निर्लज्ज नभवा, देखऽ हो बबुआ!


निरमल नील नभ, बिलाइल बदरवा,
कभी कभी आइ जाला छिड़काइ फुहरवा,
टहटह तरवा, धोआइल लागे चन्दवा, देखऽ हो बबुआ!


लीपल पोटल घर, माखी ना मछरवा,
छप्परि पर शोभे फरल कद्दू कोहँड़वा,
पंकहीन पगडण्डी, धूल ना गरदवा, देखऽ हो बबुआ!


धनवा फुलाइल कास करमी कमलवा,
मीठ लागे मकई आ केलवा कदमवा,
सियरो सराहे मीठ ऊखिया सवदवा, देखऽ हो बबुआ!


नदिया तलबवा में निर्मल जलवा,
छलकेले मछली आई के किनरवा,
जश्न मनावे बइठ बगुला बतकवा, देखऽ हो बबुआ!


खगवा के खोंतवा में खब-खब बचवा,
मुँह में खिआवे माई भरि भरि चोंचवा,
पपीहा पुकारे भेजे प्रिय सम्बदवा, देखऽ हो बबुआ!


कइसन शोभेला शरदवा, देखऽ हो बबुआ!


रिवरहेड, न्यूयार्क