दिवाली का मनाईं

डा॰कमल किशोर सिंह

आशा के बीज जवन बोवनी आषाढ में.
अंकुरते ही बहि गइल सावन के बाढ में.
सोंचऽतानी बिधना का लिखलें लिलार में.
ना घर ना दुआर, लागे जिनगी पहाड़,
भइनी भिखारी हम भादो-कुआर में.
हड्डी तोड के कमइनी, पेट काट के बचवनी,
जमा-पूँजी लूट गइल सट्टा के बजार में.
ना करु ना किरासन, मिले मुठ्ठी भर रासन.
दिनओ में लागे, बईठल बानी हम अन्हार में.
पैसा ना कौडी, का बाजार करी छँवडी?
माँगला पर माहुरो ना मिलेला उधार में.
रोजे पेट हम ठेठाईं आ दलिदर भगाईं,
अब हो गोइल दिवाला, हम दिवाली का मनाईं ?


रिवरहेड, न्यूयार्क