बारऽ एगो बतिया

डा॰कमल किशोर सिंह


मन के अँगनवो में बारऽ एगो बतिया
रहे ना अन्हार कहीं दीवाली के रतिया.

भभके भण्डार तहार, काहे कहीं भूखमरिया,
कहीं पूनवासी कहीं अमावस अन्हरिया.
घर में दलिदर न छुपावऽ हो संघतिया,
मन के अँगनवो में बारऽ एगो बतिया.

जग मग करे सब महल अटरिया,
बगल झोपड़िया में, बूझल ढिबरिया.
उहवाँ प आशवा के लावऽ एगो ज्योतिया,
मन के अँगनवो में बारऽ एगो बतिया.

अशिक्षा अभाव हटावऽ, मिटावऽ सब कुरीतिया,
जात पात धरम में ना भरमऽ ना मतिया,
होई जगहँसाई रुक जाई परगतिया,
मन के अँगनवो में बारऽ एगो बतिया
रहे ना अन्हार कहीं दीवाली के रतिया.


रिवरहेड, न्यूयार्क