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त बजट काहे खातिर होला

आलोक पुराणिक

कुछ दिन पहिले शरद पवारजी, केंद्रीय कृषि मंत्री जवन कहत रहस ओकर मतलब ई होत रहुवे कि महंगाई में उनकर हाथ नइखे. अंतर्राष्ट्रीय कारक जिम्मेदार बा. पेट्रोलियम मिनिस्टर बतावस कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल महंग हो रहल बा एहसे हमनियो के महंगाई करे के पड़ी. हाल क बजट से पहिले सबसे बड़ी समस्या रहुवे महंगाई के. बजट से पहिले पेश आर्थिक सर्वेक्षण का मुताबिक 2010-11 में नौ प्रतिशत के बढ़ोत्तरी होखी. मंदी से उबरे में लागल अर्थव्यवस्था का स्थिति पर उत्साहित आर्थिक सर्वैक्षण हालांकि ई चिंता जतवलसि कि खाये पिये के चीज के महंगाई दोसरो आइटमों ले जा सकेले. आर्थिक सर्वेक्षण में एगो बात बहुते साफगोई से सकारल गइल बा, जवना का बारे देश के आम उपभोक्ता बहुते दिन से जानत बा. ऊ बात ई बा कि थोक दाम का मुकाबिले खुदरा दाम दस गुना तेजी से बढ़ेला. खाये पिये के चीज बतुस के थोक दाम में बीस फीसदी के बढ़ोतरी भइल बा. एकर दस गुना कइल जाव त साफ हो जाई कि काये पिये का चीज बतुस का दाम में पिछलका एक साल में दू सौ फीसदी के इजाफा हो गइल बा.माने कि एक सौ के माल तीन सौ में बिका रहल बा.

सर्वेक्षण में भारत सरकार के आलोचना करत कहल गइल बा कि दिसंबर 2009 से खाये पिये का सामान के दाम में बढ़ोतरी के संकेत लउकत बा. एकरा साथही ईंधन लवना का दाम में बढ़ोतरी आ दोसरो चीजन का दाम पर होखे वाला असर से आवे वाला महीनन में महँगाई अउरी बढ़े के अनेसा पैदा हो गइल बा. आर्थिक सर्वेक्षण देखके इहो साफ बुझात बा कि सरकार गठबंधन के चलत बिया. अपने सरकार के आलोचना से साफ होखता कि कहीं न कहीं शरद पवार पर निशाना साधल गइल बा. भाव कइसे कम होखी, गरीबन के एह हालात में राहत कइसे दिहल जाई, एह बारे में आर्थिक सर्वेक्षण चुप बा. बाकिर महंगाई के भविष्य क ले के चुप नइखे. एकरा में चेतावल गइल बा कि पहिले से बढ़त महंगाई अगिला कुछ महीनना में अउरी बढ़ सकेले. एह सर्वेक्षण में खाये पिये के सामान के प्रबंधन नीति, खास कर के चीनी जइसन सामान के बढ़त दाम के आलोचना कइल गइल बा.

ई अनेसा अगिलके दिने सोझा आ गइल जब बजट 2010 में पेट्रोल डीजल के भाव बढ़ा दिहल गइल आ एक्साइज बढ़ला का बाद तमाम कंपनियन के ई बयान आ गइल कि ऊहो अपना सामान के दाम बढ़इहें. वइसे बजट में कुछ कर छूटो दिहल गइल बा बाकिर ई छूट सिर्फ बड़का करदाता लोगन के मिली, जबकि महंगाई में भाव सबका खातिर बढ़ जाई. कहे के मतलब कि राहत कुछ लोग के कष्ट सबका के. आर्थिक सर्वेक्षण क मुताबिक भारत खातिर ई पूरा तरह से संभव बा कि ओकर विकास दर दस भा ओकरा से अधिका हो जाए आ ऊ अगिला चार साल में दुनिया क सबसे तेज़ गति से बढ़ेवाली अर्थव्यवस्था बन जाव. आ ई सब तेजी एकरा बावजूद कि आर्थिक सर्वेक्षण कहत बा कि 2009-10 में खेती आ ओकरा से जुड़ल गतिविधियन में दशमलव दू प्रतिशत के गिरावट दर्ज कइल गइल बा. बजट में कृषि विकास खातिर 400 करोड़ रुपया के आंकड़ा राखल बा. एह आँकड़ा से खेती में बेहतरी हो पाई एकरा पर संदेह छोड़ दोसर कुछ ना कइल जा सके. अर्थव्यवस्था के एगो महत्वपूर्ण अंग का दुर्गति के बावजूद भविष्य की तेजी के अनुमान आर्थिक सर्वेक्षण में बदस्तूर बा. आर्थिक सर्वेक्षण में एगो बात साफ तौर पर उभरल बा कि सरकार खाये पिये का चीजन का दाम में महंगाई के चिंताजनक जरुर मानत बिया. आर्थिक सर्वेक्षण फूड कूपन का सहाररे गरीब परिवारन के बिना बिचौलिया के सीधे खाद्य अनुदान देबे के प्रस्तावो करत बा. अब ई प्रस्ताव अमली जामा कइसे पहिरी इहो सवाल बहुते महत्वपूर्ण बा. राशन का दुकान का तरह व्यवस्थो के भ्रष्ट तत्व बरबाद मत कर द सँ इहो सुनिश्चित करे के चाहीं. बाकिर एह विषय पर आर्थिक सर्वेक्षण कवनो आश्वासन नइखे दे सकत.

कुल मिला के आर्थिक सर्वेक्षण आ बजट अपना जिम्मेदारियन के राष्ट्रीय आ ग्लोबल कारक पर डालत देखाई देत बा आ वइसने आचरण करत दिखाई देत बा. ई सही बा कि ग्लोबल बाजार में कच्चा तेल के भाव लगातार बढ़ल जात बा बाकिर एकर प्रतिक्रिया बस इहे होखो कि भारत में भाव बढ़ा दिहल जाव त बजट आ सरकार के जरुरते का बा? सब कुछ बाजारे के तय करे के बा त बजट आ सरकार के भूमिका खतम हो जात बा. बाजारी शक्तियन का चलते आम आदमी परेशान ना होखे, ई तय कइल सरकार के काम ह. बाकिर सरकार ई काम करत नइखे लउकत. प्रणव मुखर्जी से उम्मीद रहुवे कि कुछ नया रास्ता निकलीहें, विकास के पटरी पर ले अइहें,बिना महँगाई के. इहे चुनौती रहुवे. एह चुनौती के मुखर्जी दादा पूरा ना कर पवलें. आवे वाला दिन विकट महंगाई के होखे वाला बा, एह बजट के इहे संदेश बा. इहे संदेश बाजारो से आ रहल बा. अगर बाजार आ बजट एके भाषा बोले लागो त फेर बजट के मतलब का रहह जाले. अब सबले बड़का सवाल इहे बा कि आखिर बजट होखेला काहे खातिर ?


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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