एकर चोखा मत बना दीं सभे

- सुनीता नारायण

Sunita Narain

आज जब हम ई लिख रहल बानी, वन आ पर्यावरण मंत्री एह बात पर विचार कर रहल बाड़े कि बीटी बैँगन के हिन्दुस्तान में उपजावल आ खाईल जा सकेला कि ना. एहसे शुरुवे में हम आपन पूर्वाग्रह बता दिहल चाहत बानी. हम जीएम, जेनेटिकली मोडिफाइड, के विरोधी ना हईं. पैदावार बढ़ावे खातिर जीएम तकनीक के इस्तेमाल से कवनो सैद्धान्तिक विरोधो नइखे. बाकिर हम बीटी बैंगन के विरोधी बानी. हम मानऽतानी कि एकरा के सकारल ना जाये के चाहीं. आ हमार तर्क कुछ ह तरह से बा ....

पहिलका, हमनी का बैंगन का बारे में बात कर रहल बानी. एगो पहिलका सब्जी जवना के जेनेटिकली मोडिफाइड कर के बीटी बैँगन बनावल गइल बा. बैँगन आम आदमी के खाना ह आ हमनी का घरन में करीब रोजाना इस्तेमाल होला. कई बेर त बिना पकवलो. से एकर तुलना बीटी कॉटन से ना कइल जा सके जवना के बहुत भइल त चारा का रुप में इस्तेमाल कइल जाले भा ओकरा से तेल निकालल जाले. कहीं त जतना जेनेटिकली मोडिफाइड फसल बाड़ी सँ ओहनी का या त प्रसंस्कारित करके इस्तेमाल कइल जाले, जइसे कि सोयाबिन, भा ओकरा के ओद्योगिक रुप से रिफाइन कर के कॉर्न भा रेपसीड आयल बनावल जाले. एह तरह एह मामिला में बैँगन के तुलना ओह जेनेटिकली मोडिफाइड फसलन से ना कइल जा सके.

दोसरे, जूरी अबहीं फैसला नइखे कर पावल कि एकरा के हमनी का स्वास्थ्य खातिर सुरक्षित माने लायक जाँच भइल बा कि ना. दू बिन्दू पर बहस केन्द्रित बा ..एक त ई कि एह सब्जियन के रोज रोज खइला आ दीर्घकालीन उपयोग के हमनी का शरीर आ स्वास्थ्य पर का असर होखी, आ दोसरे ई कि एकर अध्ययन के कइले बा.

एकरा के बनावे वाली कंपनी मोनसान्टो मेहिको के अध्ययन में एकर तीव्र कुप्रभाव पर काम भइल बा, एहमें लिदल डोज फिफ्टी भा बेसी के आकलन कइल गइल बा. लिदल डोज फिफ्टी के मतलब भइल कि पचास फीसदी भा अधिका के मौत ! कंपनी एकरा से होखे वाला एलर्जी आ चमड़ा के बिमारीओ के अध्ययन कइले बिया. सबक्रोनिक टॉक्सिसिटी, ओतना जहरीला जवना के लक्षण साफ ना होखे, बहुते कम भइल बा. चूहा, खरगोश, आ बकरी पर नब्बे दिन के असर देखल गइल बा. अबस सवाल उठत बा कि का ई पर्याप्त बा ? कंपनी कहत बिया कि हँ, चूहा के नब्बे दिन आदमी के २० बरीस के बराबर होले. विरोधी वैज्ञानिक कहत बाड़े कि ना, दीर्घकालीन कुप्रभावन के अध्ययन खातिर दोसर तरीका, दोसर प्रोटाकोल अपनावे के पड़ी.

ओहपर से अबहीं इहो साफ नइखे कि Cry1Ac टॉक्सिन भोजन में कइसे टूटी आ शरीर में ओकर चयापचय कइसे होखी ?कंपनी कहत बिया कि ओकर आँकड़ा पकावल भोजन में आ शरीर के पाचन संस्थान में एकरा में आवेवाला परिवर्तन देखावत बा, बाकिर इहो कहत बिया कि हँ हल्का क्षारीय माध्यम में ई सक्रिय रह जात बा. विरोधी कहत बाड़े कि कई बेर बैंगनकच्चो खाइल जाले आ हमनी के पाचन संस्थान कई बेर हल्का क्षारीय होले. जइसन कि हम शूरु में कहनी, जूरी अबहियो तय नइखे कर पावल.

आ एगो बड़ सवाल ईहो बा कि रउरा आ हम, जे लोग एह सब्जी के खायेवाला रही, का मालिक कंपनी के शोध पर भरोसा कर सकेनी जा ? ओह कंपनी के जे एकरा से मुनाफा कमाये जा रहल बिया. अबहीं सगरी शोध मालिक कंपनी का वित्तीय सहयोग से होला आ बाद में ओकरा परिणाम के अधिकारियन का सामने प्रस्तुत कइल जाला. एह प्रक्रिया में संदेह के पूरा गुंजाइश बा कि पता ना ऊ सब शोध भइलो बा कि ना जवना बारे में कंपनी बतियावत बिया. दवाई आ भोजन से जुड़ल निजी क्षेत्र के शोध के इतिहासो कलंकित रहल बा, से एहमें चकराये के कवन बात बा? साफ बा कि हमनी का एगो नया प्रणाली चाहब जा जवना के पब्लिक फंडिग से कइल जाव आ जवना के खुला तरीका से जाँचल जा सके. ठीक बा पइसा कंपनियने से आवे के चाहीं बाकिर उपकर, सेस, का माध्यम से बनावल कोष से. ओकरा बिना बढ़ियो से बढ़िया शोध पर संदेह के गुंजाइश जनमानस में बनल रही.

तीसरका कारण ज्यादा मूलभूत बा जवना चलते हम बीटी बैँगन के विरोध करत बानी. तथ्य त इहे बा कि हमरा लगे अधिकार होखे के चाहीं क हम बीटि बैंगन खाईं कि ना. हमनी का देश में अइसनका कवनो तरीका नइखे जवना से पता लगावल जा सके कि सब्जी का दुकान पर राखल बैंगन जेनेटिकली मोडिफाइड ह कि साधारण बैंगन. हमनी का लगे कवनो विकल्प नइखे रहत. आ हमनी जइसन विशाल देश में त ई अउरी मुश्किल बा.

लेबेल लगावे खातिर देश में प्रयोगशाला के संजाल होखे के चाहीं, आ एगो प्रभावी नियामक संस्थान जवन जेनेटिकली मोडफाइड सामान का बारे में उपभोक्ता के सही जानकारी दिहल जा सको. हमनिए के संस्था चहलस कि खाये वाला तेल के जाँच करावल जाव कि ओहमें जेनेटिकली मोडिफाइड अंश बा कि ना त लगभग सगरी प्रयोगशाला जाँच से मुकर गइल काहे कि ओह लोग के लगे जरुरी संसाधने नइखे, भा जाँच बहुते महँग पड़ी, भा जाँच असंभव बा वगैरह वगैरह. फेर बीटी बैँगन का बारे में कइसे आश्वस्त होखल जा सकी ?

आ आखिर में सबले उपर ई बात कि हमनी का जैवपर्यावरण में एह विदेशी घुसपैठ के देश के आंतरिक जैव विविधता पर का दीर्घकालीन असर होखी जहवां करीब अढ़ाई हजार तरह के बैंगन उपजावल जाले. कंपनी के कहनाम बा कि बीटी बैँगन दोसरा वेराइटी के प्रदूषित ना करी, बाकिर शोध त इहो देखावत बा कि क्रास पोलिनेशन संभव बा. त का हमनी का अपना देश के बैंगन खतम हो जाये के जोखिम ले सकीलें ?

हमर खातिर परिणाम साफ बा. अतना अनिश्चितता का बीचे बीटी बैंगन के स्वीकृति अस्वीकार्य बा. ई फैसला जीएम फसल खातिर नइखे. ई विकल्प के सवाल बा कि हम का खाईं का ना. हमरा उमेद बा कि मंत्रियो जी के फैसला अतने साफ, अतने एकार्थी होखी.


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Comment: cse@equitywatch.org
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(February 2010)


Sunita Narain
Director
Centre for Science and Environment
41, Tughlakabad Institutional Area
New Delhi 110 062


सुनीता नारायण विज्ञान आ पर्याबरण केन्द्र से साल १९८२ से जुड़ल बाड़ी. उनकर बेसी ध्यान पर्यावरण आ विकास का अन्तर्संबंधन पर रहेला. उनकर कोशिश बा कि विकास सहज सुलभ होखो आ एकरा खातिर सार्वजनिक चेतना जगावे खातिर उहाँ का एगो पाक्षिक पत्रिको निकालेनी. ई लेख ओही पत्रिका के संपादकीय के अनुवाद हऽ. अनुवाद हमार हऽ, मूल लेख पढ़े खातिर डाउन टू अर्थ पर जाईं.

अनुवाद में कवनो तरह के विसंगति भा भूल के जिम्मेदारी हमार बा आ ओकरा खातिर हम पहिलहीं माफी मांग लेत बानी.

अँजोरिया भोजपुरी के पहिलका वेबसाइट होखला का नाते आपन जिम्मेदारी समुझेले आ हमेशा एह दिशाईं लागल रहेले कि भोजपुरी में उत्कृष्ट सामग्री उपलब्ध हो सके. एही चलते बीच बीच में एह पर प्रतिष्ठित लेखक आ विचारक लोगन के रचना दिहल जात रहेला.

अँजोरिया सुनीता नारायण जी के कृतज्ञ बिया कि उहाँ का अपना लेखन के अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति दे दिहलीं.

- सम्पादक, अँजोरिया.