कहाँ से कहाँ

हमार सोच गुनाह, त सजा के दी?

Abhay Tripathi रोज लेखा आजो हमार आँख सुबह सुबह खुल गइल. दिनचर्या से निपटला क बाद जब हम अखबार के पन्ना पलटे लगलीं त अचानक एगो बात जेहन में घूम गइल. "अरे आज त २६ जनवरी बा, हमनी के राष्ट्रीय पर्व गणतन्त्र दिवस." हमरा साथे ई घटना कुछ वइसने भइल जइसे कि जाड़ा के मौसम में आम के फसल, चाहे दुबई के तपन में बरफ गिरल. बाकिर आखिर अइसन का हो गइल कि हमरा ई दिन याद करे खातिर अखबार के सहारा लेबे पड़ गइल ? का होखी जब कम्प्युटर अउरी आधुनिक युग में अखबारो के अस्तित्व ना रही ? शायद हमरा एह दिन के याद करे खातिर दुसर कवनो माध्यम मिल जाई बाकिर आज हमरा एह सवाल के जवाब खोजल जरुरी हो गइल बा कि अइसन काहे भइल. मानसिक सुनामी के भँवर जाल में खाली हमहीं जकड़ल बानी कि एह मायाजाल में अउरीओ लोग फँसल बा ? बस फिर का, हमार दुरबीन रुपी कलम हमरा हाथ में आ गइल अउरी हम आपन सवाल जवाब क साथे आप लोग के बीच में आ गइलीं. साथी मिलल केकरा नीक ना लागे. बाकिर हमरा के दिल से खुशी होखी कि जवन भँवर जाल में हमार मानसिक स्थिति बा ओह मकड़जाल से बकिया लोग बचल होखे.

हमरा त एह सवाल के जवाब खोजे खातिर दूर ना जाये क पड़ल आ सबकुछ अगले बगल में कवनो फिलिम के स्लो मोशन का तरह घूम रहल बा बाकिर ओह सब के बतावे से पहिले एह बात पर प्रकाश डालल ज्यादा जरुरी बा कि हमरा दिल में गणतन्त्र दिवस के का महत्ता रहे आ आजु के दिना काहे हमरा दिल से ई राष्ट्रीय पर्व निकल गइल बा. जब से हमार वजूद दुनिया में आइल आ जइसे जइसे हमार सोचे समझे के शक्ति विकसित होत गइल हमरा दिल में गणतन्त्र के महत्ता एकता में अनेकता के रुप में पलत गइल. कहे के मतलब ई कि हमरा खातिर गणतन्त्र के मतलब मजबूत एकता के अलवा कुछुओ नइखे. वइसे त गणतन्त्र दिवस क दिने गणतन्त्र भारत के संविधान के नींव रखाइल. २६ जनवरी १०५० के तत्कालिक भारतीय राज्यन के एक सूत्र में पिरोवे के काम जवना धुमधाम से भइल रहे ऊ एतिहासिक रहे. बाकिर ओकरा बाद कवनो ना कवनो वजह से ओकरा के सहेज के राखे खातिर कवनो प्रयास ना भइल. शायद एही के नतीजा बा कि आज लोग भारतीय कम आ मराठी, पंजाबी, बंगाली, गुजराती ज्यादा बा. हमरा अफसोस एह बात के नइखे कि लोग अइसन काहे बा. हमरा अफसोस एह बात के बा कि खुद के अइसन बतावे वाला लोग ताल ठोक के खुद के ज्यादा राष्ट्रवादी कहत बा आ कवनो ना कवनो रुप में देश के बकिया लोग के लतियावत बा, जुतियावत बा.

राष्ट्रगान पर खड़ा होके के सम्मान करे क वकालत करे वाला लोग का दिल में देश के आधा से बेसी जनता के कीमत कीड़ा फतिगां से अधिका नइखे. १७ राज्य से स्वाधीनता के सफर शुरु करे वाला देश में यदि कुछ विकसित भइल त सिर्फ कुछ अउरी नया राज्य. आ खुद के भारतीय के जगह मराठी, भोजपुरी, पंजाबी, बंगाली चाहे तमिल, तेलुगु, मलयाली आ गुजराती कहे वाला लोगन के झुण्ड. एह झुण्ड के भलाई करे क नाम पर बकिया सब दुसरा लोग के गरियावे आ जुतियावे वाला नेता लोग. हिन्दू यदि धर्म बा त हमरा हिन्दू होखला में गर्व होखे के चाहीं आ बटलो बा. बाकिर विडम्बना देखीं कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़ ठेकेदार होखे के दावा करे वाला हिन्दूवन के सबसे बड़ दू राज्य क लोगन से जेतना नफरत करऽता ओतना त केहू जानवरो से ना करत होखी.अइसनो नइखे कि कमी एकही तरफ बा, कम भा बेसी ई कमी त सब तरफे नजर आ जाला. बाकिर बात ओफि जगहा अटक जाला कि हमरा बेटवा में कवनो कमी नइखे. तनि देखीं कि विदेश जाये खातिर विदेशी भाषा सिखला में बुराई नइखे बाकिर देशे क दुसरा राज्य में कमाई करे जाये वालन से ओह राज्य के भाषा सीखे के बात कहल राष्ट्रविरोधी कहाये लागे ला.

६० साल के भीतर १७ राज्य से शुरु होखे वाला सफर २५ से ऊपर ले पहुँच गइल बा आ अउरी आगे बढ़ावे खातिर आजकल जोर से मारकाट मचल बा. बाकिर हमरा त नइखे बूझात कि कवनो बढ़ोतरी आम जनता चाहे नेतवन में राष्ट्रवादी भावना के अलख जगा सकी. उल्टे कुछ स्वार्थी नेता लोग के बैंक बैलेन्स आ सम्पत्ति में हजारन करोड़ के इजाफा जरुर हो जाई. चली मानलीं कि हम ई सब स्वार्थ क वशीभूत होके सोचत बानी तबहियो तनिका ध्यान दीं कि जवना देश में रोज कवनो ना कवनो दिवस, महाराष्ट्र दिवस, गुजरात दिवस, भोजपुरी दिवस, परशुराम दिवस, कबीर जयन्ती, रविदास जयन्ती, दोस्ती दिवस, प्रेम दिवस, हिन्दी दिवस अउरी ना जाने केतना दिवस, मनावल जा रहल बा ओह देश में यदि हमरा से राष्ट्रीय दिवस के ख्याल निकलिये गइल त कवन गुनाह हो गइल ? आ गुनाह होइयो गइल त हमरा के सजा के दी ? नारी के इज्जत से खेलवाड़ करे वाला राठौर के देश में छुट्टा घूमला क अनदेखी करे वाली अदालत, कि ऊ नेता लोग जिनका पते नइखे कि देश में सबसे ज्यादा हिन्दुवन के जनसंख्या ओह प्रदेश में बा जेकरा से ऊ नफरत करेले, आ कि ऊ लोग जिनकरा विदेश गइला पर अंग्रेजी सीखला से परहेज नइखे लेकिन देश के दुसरा हिस्सा में कमाये गइला पर ओह प्रदेश के भाषा सीखला के बात करे वाला राष्ट्रविरोधी नजर आवेला.

यदि आज के दिन भुल गइल अपराध बा त हमरा के सजा देबे के अधिकार ओहि लोग क बा जे भारतीय. लेकिन जवना गति से भारतीयता के राज्यन में बाँटल जा रहल बा हमरा डर बा कि आज हमरा के सजा देबे वाला शायदे केहू मिल पाई. इतिहास त इहे कहेला कि कवनो मजबूत निर्माण दुसरा के तोड़ के कबो नइखे भइल आ आगहू ना होखी. वइसे हमरा पास कम से कम अगिला १०० साल तक सबकरा के राष्ट्रवादी बनावे के अचूक बाण बा. अउरी ऊ इहे बा कि आज मौजूद सब राज्य के राष्ट्र के दरजा दे दिहल जाव अउरी सगरे जिला के राज्यन के. फेर जब एहि तरह के हालात आवे तब सब जिलो के अलगा अलगा राष्ट्र क रुप में स्वीकार कर लिहल जाव. अन्त आपन लिखल एह पंक्तियन से करल चाहेब....

कइसे मनाई गणतन्त्र दिवस, मन में बा सवाल, एकर जवाब खोजले में बा, सबसे बड़ बवाल. सबसे बड़ बवाल, मच गइल दिल में हाहाकार, राष्ट्रवादियन के खोजे में हो जाइब खुदे शिकार, कहें अभय कविराय त फिर कइसे हो निपटारा, सबके एक एक राष्ट्र क भइया दे द तू पिटारा.

अभय कृष्ण त्रिपाठी

गणतन्त्र दिवस के शुभकामना