करन थापर का नामे एगो खुला चिट्ठी

6 Nov 2008

थापर जी,

राउर लिखल शोभा दे के इन्टरव्यू पढ़त रहीं. ओहमें एक जगहा रउरा लिखले बानी कि मुम्बई अब कमो बेसी पटना लेखा हो गईल बा ?

रउरा के के ई अधिकार दिहलसि कवनो शहर का मानहनन के ? हाल फिलहाल पटना आईल बानी का ? अपराध का आंकड़ा पर नजर डलले बानी का ? ओहिजा क्षेत्रीय नफरत के कवनो नमूना देखनी हा का ?

तनी ईयाद करे के कोशिश करीं. पटना में पिछला दसियन साल में कवनो साम्प्रदायिक दंगा भईल बा का ? एह दशक में ? पिछला दशक में ? अस्सी में ? सत्तर में ? एगो बात बतावे दीं हमरा के. पटना में कबहियों साम्प्रदायिक दंघा नईखे भईल. क्षेत्रीयता ? पटना में बंगालियन के बहुत बड़ आबादी बा आ ऊ लोग जवनो थोड़ बहुत नौकरी ओहिजा उपलब्ध बा तवना के हासिल करे खातिर पूरा कोशिश करेलें. ब्रिटिश काल में त एक तरह से ओह लोग के मोनोपोलि रहुवे सरकारी नौकरी पर. कबो सुनले बानी का बंगालियन का खिलाफ कवनो तरह के आन्दोलन भा बयानबाजी के ? शहर के व्यापार के बड़हन हिस्सा पर मारवाड़ियन के कब्जा बा. पंजाबीओ आबादी पूरा बा. सिक्ख धर्म के दोसरका सबले पवित्र धाम, गुरु गोविन्द सिंह के जन्म स्थली, ओहिजे बा. तीस हजार से बेसी दक्खिन भारतीय बाड़े. पटना आ दानापुर में एंग्लो इण्डियन निमना संख्या में बाड़े. बिहार विधान सभा में दू गो सीट ओहि लोग खातिर रिजर्व बा. अंगरेजी लेखक विलियन डलरिम्पल खुदे हमरा के लीकले बाड़े कि उनुकर परिवार के भागलपुर से गम्भीर नाता बा. बाकिर इन्दिरा गाँधी के हत्या का बाद सिक्ख पंजाबियन के कुछ दुकान लुटाईल छोड़ के, ध्यान दीं केहू के जान ना गईल रहे, पटना में कवनो क्षेत्रीय भावना के हिंसा के उदाहरण नईखे. पटना अगर उपद्रव का कगरी कबो चहुँपल रहे त १९४२ का भारत छोड़ो आन्दोलन आ १९७४ का जेपी आन्दोलन घरी, आ दुनू राष्ट्रीय भावना का चलते.

त रउरा मन में ई बात कइसे आ गईल कि प्रान्तवाद के घटिया उदाहरण का रूप में पटना के नाम ले लिहनी ? का ई सब बिहार आ बिहारियन का प्रति मीडिया के फईलावल भ्रान्ति ना हऽ ? का ई एह चलते नइखे कि रउरा लेखा कुलीन लेखक दोसरा का बारे में घटिया विचार राखे खातिर प्रशिक्षित बा लोग ? आ कि ई खालि अज्ञानता हऽ ? आ कि बिहार के गरीब जान के रउरा लेखा कुलीन लेखल लोग सोचेला कि बिहार का बारे मं निडर होके कुछुवो कहल लिखल जा सकेला आ रउरा लोग के पाठक वर्ग, जवना में बिहारी बहुत कमे होखिहन, विरोध ना करी ?

भगवान खातिर, एह तरह के लेबल बे सोचले समुझले चस्पा कइल छोड़ दीं सभे. आईं एगो आँकड़ा का बारे में बात कईल जाव. मुंबई में नया आवे वाला आबादी में बिहारियन के संख्या अढ़ाई से साढ़े तीन फीसदी बा. मुंबई का कुल आबादी में बिहारी साढ़े तीन फीसदी से बेसी नईखन. ई आँकड़ा टाटा इंस्टीच्युट आफ सोशल साइन्सेस के सर्वे का आधार पर दिहल गईल बा. एकरा के कइसे बेसी कहल जाव जब मुंबई महाराष्ट्र का राजधानी का रुप में ना देश के आर्थिक राजधानी का रुप में जानल जाला.

अब भगवान जानसु राज ठाकरे काहे बिहारियन के राक्षस का रुप में चित्रित करे खातिर बेचैन बाड़े. रउरा सोचब त शायद हमरा बात से सहमत हो जायेम कि ई मीडिया के बनावल बिहार का इमेज का चलते बा. कुछ दिन पहिले रउरे सहकर्मी एगो दोसर राज, राजदीप सरदेसाई, महाराष्ट्र के अपराधीकरण के बिहारीकरण के शीर्षक दिहले रहलन. पूरा लेख के लब्बो लुआब इहे रहे कि बिहार जियत नरक हऽ. एही सब का चलते राज ठाकरे बिहार के खलनायक बना के आपन राजनीति चमकावे में लागल बाड़े.

हम जानत बानी कि भारत के अंगरेजी अखबारवाला बिहार का बारे में कतना घटिया सोच राखेला लोग. ओह लोग से ई उमेद कईल फिजूल बा कि ऊ लोग बिहार के बलिदान ईयाद कर सको. नमक सत्याग्रह वाला चम्पारण आन्दोलन होखो, सन् ४२ के भारत छोड़ो आन्दोलन होखो भा सत्तर का दशक के तानाशाही का खिलाफ बगावत होखो. हम ईहो नईखी सोचत कि अंगरेजी मीडिया भाड़ा के समानीकरण का चलते बिहार झारखण्ड के होखे वाला नुकसान पर लिखी भा केन्द्रीय संसाधन के पक्षपातपुर्ण वितरण का बारे में. बाकिर बिहारियन का प्रति ई दुर्भावना अब बिहार के गांव गांव शहर शहर में उपेक्षित होखे के भावना पैदा कर रहल बा. बिहारी राजनेता जहाँ तक हो सके बिहारियन के आक्रोश दबावे में लागल बाड़े. अगर रउरा सभे भारत में आस्था राखेनी त रउरो सभे के एह में आपन योगदान देबे के पड़ी.

अगरेजी मीडिया में बिहार के पक्षपातपुर्ण कवरेज से अब तक त हमरा मान लेबे के चाहत रहल हा कि रउरा सभे से निष्पक्ष आचरन के उम्मीदो कईल बेकार होखि. बाकिर करीं त का ? हम बिहारी हईं, हम अपना भारतीयता के ना छोड़ सकीं. आ आशा छोड़ल हमरा खून में नईखे. सरकार के भेदभाव होखो भा प्रकृति के तबाही, कबो कवनो बिहारी के आत्महत्या करे के बात ना सुनत होखम सभे. एहि चलते हम अबहियों आशा करत बानीं कि हालात बदली. आ बदले के चाहीं.

धन्यवाद

राउर
ठाकुर विकास सिन्हा.