Alok Pathak

At present in Finland. Belongs to New Jhusi, Allahabad.

ट्रेन यात्रा

आलोक पाठक

ऊ दिनवा हम पहिला बेर ट्रेनवा से बिना टिकिट जात रहनी आपन घरे. जइसन की रउवा लोगन जानते हईं की बिद्यार्थी जीवन में बिना टिकिट रेल के सवारी दहेज़ में मिलल अधिकार जइसन होला, त हमहू दामाद बन के जात रहनी.

हमके कॉलेजवा में सीनियर लोग सिखैले रहलन की कइसे साथी सवारी लोग से दोस्ती बढ़ावे के, कइसे उनकर भोजन तक में हिस्सा बटोरे के , आउर कइसे बात बात में सीटवा के कोना हथिया के आराम से सफर काटे के.

ऊ लोगन के प्रभावित करे खातिर कइसन बात करे के कला चाही , जे रामायण से राखी सावंत , और शकीरा से सोहा अली खान तक तक कौनो विषय मिल जाए बस शुरू हो जा. और सबसे ज़रूरी शिक्षा त स्टेशनवा से बाहर खिसके के गुप्त रास्ता कहाँ होला, ई रहे.

जइसहीं हम ट्रेनवा से उतरनी सीधा नजर पडल टी टी लोग के भीड़ लागल हा, दसहरा आए वाला रहल त टी टी लोग भी ओवर टाइम करत रहलन.

जेकर डर रहे उहे भईल, धरा गईली रंगे हाथ एक दम. हमरे जइसन कम से कम २० रंग रूट आउर रहलन. हमनी के कहल गईल, मिला के कम से कम २००० देवे के पड़ी.

कई लोग के रोवाई छुट गईल , केहू गरीबी के नाम पे , केहू स्टुडेंट के नाम पे , केहू खाली महतारी के नाम पे ही रोये लागल.

टी टी लोग शायद आपन कौनो साहब के जोहत रहलन ... केतना जुरमाना लगाये के हा आपस में तये करत रहलन सब. और हम आपन करम के कोसत रहनी की काहे बिना टिकेट आए के सोचनी.

तबले तनी देर में देखनी की सामनवा से केहू टी टी के ही कपड़ा में भागत आव ता, एसे पहिले कि कुछ समझ आओ , ऊ आदमी तेज़ी से आईल , का जाने का खुसर फुसर कहलस बाकि सब टी टी के , आउर सब के सब भाग परइले कौनो दोसर ट्रेन के ओर.

हमरा कुछो न बुझाईल का भईल. आउर बुझला का कवनो जरूरतो न रहे .. त रउवा लोगन के बताये के भी जरुरत न ह की हम उहां से मौका पाके भाग गईनी.

"नकली टीटीयों का दल, सिवान जंक्शन स्टेशन में पकड़ा गया"

अगला दिन अख़बार के पहिलका पन्ना पढ़के पता चलल का बात रहे.