मुफलिस

चौधरी टोला, डुमराँव, बक्सर 802 119

कुछु समसामयिक दोहा

अँजोरिया के पहिलका अंक में अगस्त २००३ में प्रकाशित

मुफलिस

देइ दोहाई देश के, लेके हरि के नाम,
बनि सदस्य सरकार के, लोग कमाता दाम.

लूटे में सब तेज बा, कहाँ देश के ज्ञान,
नारा लागत बा इहे, भारत देश महान.

दीन हीन दोषी बनी, समरथ के ना दोष,
सजा मिली कमजोर के, बलशाली निर्दोष.

असामाजिक तत्व के, नाहीं बिगड़ी काम,
नीमन नीमन लोग के, होई काम तमाम.

भाई भाई में कहाँ, रहल नेह के बाति,
कबले मारबि जान से, लागल ईहे घाति.

नीमन जे बनिहें ईहां, रोइहें चारू ओर,
लोग सभे ठट्ठा करी, पोछी नाहीं लोर.

अच्छे के मारी सभे, बिगड़ल बाटे चाल,
जीयल भइल मोहाल बा, अइसन आइल काल.

पढ़ल लिखल रोवत फिरस, गुण्डा बा सरताज,
अन्यायी बा रंग में, आइल कइसन राज.

सिधुआ जब सीधा रहल, खइलसि सब के लात,
बाहुबली जब से बनल, कइलसि सब के मात.

साधु, सज्जन, सन्त जन, पावसु अब अपमान,
दुर्जन के पूजा मिले, सभे करे सनमान.

पइसा पइसा सब करे, पइसा पर बा शान,
पइसा पर जब बिकि रहल, मान, जान, ईमान.