भउजी हो

ए बबुआ !

अरे भउजी, तूँ कइसे ?

ढेर दिन से ना लउकनी हँ त हम सोचनी कि हमहीं देखत चलीं कि देवर जी काहे नइखन आवत.

बस भउजी. कवनो कारण नइखे. काम के बोझा अतना हो गइल बा कि टाइमे नइखे मिल पावत.

बाकिर पहिले त अइसन ना होत रहे.

सब समय के फेर हवे भउजी. बड़ा मौज था जब कुँवारे थे हम तुम !

हमरा बात के हवा में जन उड़ाईं.

भउजी कुछ घाव अइसन होलीं सँ कि ना बतावल बनेला ना देखावल. एहसे बात के गड़ले रहे दऽ.

अरे अइसन का हो गइल जे दार्शनिक बन गइनीं ?

सुनले नइखू ? वियोगी होगा पहला कवि आह से उपजा होगा गान.

विडम्बक वहीं पास में खड़ा छेड़ता होगा उल्टी तान. इहो त कहल बा. एहसे जिनगी के दुख दर्द भुला के अपना काम में लागल रहे के चाहीं. जंगल में केहू देखे वाला ना होला त मोर नाचल त ना छोड़ देव !

से त ठीक कहत बाड़ू भउजी !

कबो गलतो कहले बानी का ?

छोड़ऽ ई सब. चलऽ बइठऽ आजु हम चाय बनावत बानी, तू पीयऽ.

काहे ? कनिया केने बाड़ी ? नइहर गइली का ?

ना भउजी. हम कुछ काम में अझूराइल रहलीं हँ त उहे बाजारे गइल बाड़ी सब्जी ओब्जी ले आवे.