Manoj "Bhawuk"
गजल
मनोज "भावुक"
जिनिगी पहाड़ जइसन लागे कबो कबो.
जिनिगी पहाड़ जइसन लागे कबो कबो.
सुखला में बाढ़ जइसन लागे कबो कबो.
आपन कहाँ बा कुछुओ, झूठो के बा भरम.
सांसो उधार जइसन लागे कबो कबो.
होखे महल भा मइई, पर प्यार के बिना,
सगरो उजाड़ जइसन लागे कबो कबो.
डोली ई देह लागे, दुलहिन ई आत्मा.
जिनिगी कंहार जइसन लागे कबो कबो.
ओठे बसन्त भलहीं, पतझड़ हिया में बा.
दिन में अन्हार जइसन लागे कबो कबो.
सभकर बा हाथ पसरल, मंदिर में देख लीं.
दुनिया भिखार जइसन लागे कबो कबो.