आम दर्शक का नजर में भोजपुरी सिनेमा

अमितेश कुमार

भोजपुरी सिनेमा खूबे फलफुल रहल बा. भोजपुरिया समाजो से अलगा एकर एगो विशाल दर्शक वर्ग बा. बिहार आ यूपी का अलावहूं देश के दोसरो भाग में लोग बड़ा चाव से भोजपुरी सिनेमा देख रहल बा. भोजपुरी सिनेमा के निर्माण में व्यापक वृद्धि से यूपी बिहार के बहुते सिनेमा हालन के नया जिनिगी मिल गइल बा. ढेर सगरी कलाकारनो के आपन कैरियर बनावे के मौका मिल गइल बा. हिन्दी सिनेमा में असफल होखला का बाद भोजपुरी सिनेमा में आइल रविकिशन आजु भोजपुरी के सुपर स्टार बन गइल बाड़े. हिन्दी आ भोजपुरी सिनेमा के प्रतिष्ठित निर्देशक मोहन जी प्रसाद रविकिशन के ले के सईंया हमार बनवलन जे बहुते सफल साबित भइल. बहुत दिन बाद कवनो भोजपुरी फिलिम ओतना चलल रहे. एह सफलता से ऊ सगरी लोग उत्साहित हो उठल जे भोजपुरी सिनेमा बनावल चाहत रहे.

सईंया हमार के कुछ दिन बाद मनोज तिवारी के ले के ससुरा बड़ा पइसावाला फिलिम आइल. बहुत दिक्कत का बाद रिलीज हो पावल ई फिलिम जहें आ जवने सिनेमा हाल में लागल ओहिजे आपन झंडा हलावत चल गइल. एकरा बाद त मरल भोजपुरी सिनेमा उद्योग में जान आ गइल आ धड़ाधड़ फिलिम बने लगली सन. आजु देखल जात बा कि हर हफ्ता दु गो तीन गो भोजपुरी फिलिम रिलीज हो रहल बाड़ी सन. भोजपुरी फिलिमन के व्यावसायिक सफलता देख के दोसरो भाषा वाला लोग भोजपुरी फिलिम बनावे लागल.

कम लागत में बढ़िया मुनाफा देबे वाला भोजपुरी फिल्मोद्योग में अब त कार्पोरेटो घराना उतर गइल बाड़े. टेलीविजन के सबसे सफल शख्सियत एकता कपूरो भोजपुरी सिनेमा बनावे लगली. अमिताभ बच्चन, अजय देवगन, मिथुन चक्रवर्ती, जैकी श्राफ जइसन हिन्दी सिनेमा के सफल शख्सियतो भोजपुरी फिलिम में अइलें. नगमा, भाग्यश्री, श्वेता तिवारी भोजपुरी के लोकप्रिय अभिनेत्री बन गइली. कहल जा सकत बा कि भोजपुरी सिनेमा के चकाचक बाजार का आगा हिन्दी सिनेमा के मार्केट गड़बड़ा गइल बा.

अतना कहला का बादो हम भोजपुरी सिनेमा के भविष्य का बारे में बहुत उत्साहित नइखीं. व्यावसायिक सफलता ठीक बा बाकिर गुनवत्तो एगो मानक होला. आ एह बिन्दु पर जब हम आवऽतानी त चिन्तित हो जात बानीं. ओकरे बिन्दुवार चर्चा आगा कर रहल बानी.

सबसे पहिले त ई चर्चा कइल जरुरी बा कि भोजपुरी सिनेमा के प्रेरणा कहाँ से मिल रहल बा. जवाब होखी हिन्दी सिनेमा से. भोजपुरी सिनेमा के शुरुआत करे वाला नाजिर हुसैन आ सुजित कुमार जइसन लोग हिन्दी के स्थापित कलाकार रहे लोग आ अपना भाषा में अपना माटी ला फिलिम बनावे का प्रेरणा से ऊ लोग फिलिम बनवलक. जेहसे ओह दौर के फिलिमन में कहानी, बैकड्राप, संगीत, कलाकार, सब कुछ भोजपुरिया लागे, हिन्दी सिनेमा के नकल ना. भोजपुरिया समाज के समस्या, रीति रिवाज, लोकपरम्परा के चित्रण ओह दौर के फिलिमन में भइल. बाकिर नयका दौर के भोजपुरी सिनेमा हिन्दी फिलिमन के सस्ता नकल बन के रह गइल बा. कुछ त सोझे रिमेके का नाम पर बनली सन, जइसे गब्बर सिंह आ कुछ दू चार गो हिन्दी फिलिमन के फेंटफांट के बना लिहल गइल. एहसे कहानी का नाम पर कुछ रहिये नइखे जात. नकलो बे अकल के हो रहल बा. कहानी कवनो तरफ से भोजपुरिया नइखे लागत. सब कहानी एके लेखा लागऽता.

हीरो हीरोइन विलेन के सांचा तईयार बा. जईसे हीरो गरीब होखी, पढ़ल लिखल बेरोजगार होखी, नौकरी में होई त पुलिसिया होई, ना त समाज के सतवला से बाहुबली भा अपराधी बन गइल होई. हीरो के काम लोग के मदद कइल, हीरोइन से प्यार कइल, आ विलेन के मारल होई. हीरोइन के हालत भोजपुरिया सिनेमा में काब बा. ऊ माडर्न होखी, छोट कपड़ा पहिरी, शुरु में रुआब झाड़ी आ हीरो से अंग्रेजी में डाँट खइला का बाद ओकरा से प्यार करे लागी. गाँव के होखी त आदिवासी जस कपड़ा पहिरी. एहसे साफ बा कि हीरोइन के लेके भोजपुरी सिनेमा के सोचे गलत बा. अपवादे होखी जे कवनो फिलिम में हीरोइन प्रामाणिक लागत होई. विलेन अक्सर हीरोइन के बाप, भाई, कवनो नेता, भा बाहुबली होई. ऊ अपराध कम करी बाकिर हीरो से बार बार टकराई आ आखिर में मरा जाई. एह तीन पात्रन का अलावा हीरो के माई आ दोस्त के भूमिका रहऽता. माई रोअते रही आ दोस्त हँसावते रही. एही तय ढाँचा पर कहानी बना के ओमे भरपूर गीत डाल दिहल जाई. चार गो गीत निमन लाग गइल त फिलिम चल निकली. गीत के कहानी से कवनो तालमेल होखल जरुरी नइखे. गीत में से दू गो सपना में, दू गो हीरोइन के परेशान करे में, दू गो प्यार के गीत आ अनिवार्य रुप से एगो आयटम गीत. आयटम गर्ल का रुप में बुझाला कि संभावना सेठ के पहिलही साइन कर लिआला. एहिमे स्वाद का अनुसार कभी छठ गीत, कभो होली गीत, कबो भक्ति गीत मिला दिया ता. संगीत में पहिले भोजपुरी के रस मिलत रहुवे, अब उहो गायब होखल जात बा आ गीत के बोल सीधे हिन्दी से अनुवाद कइल लागऽता. बस एहि चासनी में लपेट के फिलिम दर्शकन का सोझा परोस दिहल जात बा.

एगो अउरी बात ई हो रहल बा कि फिलिम के नाम कवनो गीत का आधार पर राख दिहल जात बा. ओह नाम से फिलिम के कहानी के कवनो तालमेल नइखे रहत. जइसे पंडित जी बताई ना बिआह कहिया होई में ए गाना के फिलिम से कवनो तालमेल ना रहुवे आ फिलिम के कहानी कुछ दोसरे रहे. एही तरहे फिलिम के पोस्टर पर हिंसा के सीन राख के, अश्लील चित्र लगा के दर्शकन के रिझावल जात बा. हिंसा के जरुरत से ज्यादा चित्रणो चिंता के खास कारण बा.

कुशल अभिनेता आ अभिनेत्री के भोजपुरी सिनेमा में बड़ा अभाव बा. हैरानी के बात बा कि सहायक आ चरित्र अभिनेता कुछ बढ़िया अभिनय करत बाड़े. इक्का दुक्का हीरो के छोड़ के केहू के अभिनय करे नइखे आवत. हीरो अभिनय का नाम पर दु चार गो जानदार संवाद बोल देत बा, डांस करऽता आ मारधाड़. हीरोइन का हिस्सा में कुछे सीन आवऽता, बाकी समय देह देखावे में आ गीत गावे में बीत जा ता. अभिनेता से बढ़िया काम करावल निर्देशक के काम हऽ, बाकिर भोजपुरी निर्देशकन के पूरा धेयान मसाला फेंटे में रहत बा. एही से मोहन जी प्रसाद के छोड़ दोसर कवनो निर्देशक के चर्चा नइके होखत. सिनेमा निर्देशक के माध्यम हऽ आ विडम्बना बा कि भोजपुरी सिनेमा में निर्देशके हाशिया पर चल गइल बा. एह सब के जिम्मेदार सिनेमा से ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाये के प्रवृति बा.

अब सवाल उठत बा कि दर्शक काहे ई सिनेमा देखत बा? सिनेमा मनोरंजन के प्रमुख साधन हऽ. हिन्दी सिनेमा धीरे धीरे आम आदमी का चहुँप का बाहर होखल जात बा. ओकरा कहानी से, गीत संगीत से दर्शक अपना के जोड़ नइखे पावत. सत्तर आ अस्सि का दशक में इहे आम दर्शक हिन्दी सिनेमा के सफलता के मुख्य कारण रहुवे. आजुवो आम दर्शकन ला बनावल फिलिम खूब चलत बा. अब हिन्दी सिनेमा के चीज दर्शक के ओकरा अपना भाषा भोजपुरी में मिलऽता त ऊ भोजपुरी फिलिम देखे चहुँप जात बा. आपन बोली, अपना कलाकार के देख के दर्शक बहुत खुश होखत बा. अधिकतर भोजपुरी फिलिम सत्तर अस्सी के दशक के सफल हिन्दी फिल्मन के भा भोजपुरी बेल्ट में सफल रहल कवनो फिलिम के नकल पर बनत बा. एह चलते भोजपुरी सिनेमा में स्तरीय सिनेमा नइखे बनत. आ अबहियों भोजपुरी के बौद्धिक समाज एह सिनेमा से दूर बा.

अश्लीलता के बढ़त इस्तेमालो चिन्ता के बात बा. अश्लील संवाद, गीत, नृत्य, के मात्रा भोजपुरी फिलिम में बढ़ले जात बा. ठीक बा कि भौजपुरी समाज में तनिका खुलापन बा बाकिर एह खुलापन के खुला छूट लिहला से परिवार धीरे धीरे एह सिनेमा से दूर होत जाई आ दर्शक वर्ग सिमटे लागी. भोजपुरी सिनेमा में अबहियों भोजपुरी समाज के समस्या, ओकरा लोकाचार, रीति रिवाज के चित्रण नइके होकत. जवन होतो बा तवन व्यावसायिक नजरिया से जइसे पर्व का नाम पर होली आ छठ के चित्रण होला. समस्या का नाम पर गांव से पलायन, दहेज, भ्रूण हत्या, बेरोजगारी छोड़ के अपराध के ले के फिलिम बनावल जा रहल बा जवना में अपराधियन के ग्लैमराइज्ड कइल जात बा. मिला जुला के कहीं त भोजपुरी सिनेमा भोजपुरी समाज के व्यावसायिक दोहन कर रहल बा. ई उद्योगो मुंबई मे बसल बा. कायदे से एकरा यूपी भा बिहार में होखे के चाहीं जेहसे एहिजा के कलाकारन आ तकनीशियन के काम मिलो आ इहां के सरकार के फायदा होखो. सरकारो के एला काम करे के पड़ी.

भोजपुरी सिनेमा का ओर अब जब बड़का निर्माता कंपनी के नजर पड़ गइल बा त संभावना बा कि सिनेमा निर्माण में बढ़ोतरी होखी. लेकिन एह रफ्तार से गुणवत्ता गिरल त ई रफ्तार ढेर दिन ले टिक ना पाई. भोजपुरी सिनेमा के हिन्दी सिनेमा से सीख लेबे के चाहीं. फार्मूला में बेसी यकीन राखेवाला सिनेमा के हालत ई बा कि साल में दसो गो सिनेमा हिट नइखे होखत. उहे फिलिम चल पावत बा जवना में ताजगी आ नयापन बा. भोजपुरी सिनेमा में लगातार ताजगी ले आवे के पड़ी आ ई ताजगी ओकरा दर्शक वर्ग से जुड़ले पर मिली. एहू दौर में कब होई गवनवा हमार, कब अइबू अँगनवा हमार, विदाई, कन्यादान, हम बाहुबली जइसन कुछ ठीक ठाक फिलिम बनल बाड़ी स बाकिर गिनतिये भर के.

अंत में हमार कहनाम इहे बा कि भोजपुरी सिनेमा जवना दर्शक से कमाई करत बा ओकरा प्रति कुछ कर्तव्यो निबाहे के पड़ी. दर्शकन के रुचि परिष्कृत करे खातिर ओकरा सार्थक सिनेमा बनावे के पड़ी. साथही अइसन सिनेमा बने जेसे दोसरो भाषा के लोग एह सिनेमा का ओर आवे. भोजपुरी सिनेमा के एगो राष्ट्रीठ पहचान बने. तबे दर्शक वर्ग बढ़ी आ सफलता के ई दौर टिकाऊ होई. ध्यान रहे कि दर्शक केहू के ना होला. आज अपना बोली, अपना समाज, अपना कलाकार से जुड़े के अदम्य लालसा से ऊ फिलिम देख के हिट करावऽता. अगर कहानी आ सिनेमा के स्तर पर ध्यान ना दिहल गइल, विविधता ना रहल त एकदिन दर्शक सिनेमा से दुर होत जाई आ ऊ स्थिति केहू का हित में ना होखी.


अमितेश कुमार दिल्ली विश्वविद्यालय से हिन्दी में पी॰एचडी॰ कर रहल बाड़े.