बतकुच्चन - २

पिछला बेर वादा त कइले रहीं कि तोपना आ पेहान के बात करेम, बाकिर अपना बात पर टिक जाव त ऊ बातबनवा का? से आज हम कुछ दोसरे बात करे जा रहल बानी. असल में ई बात जब हमरा धेयान में आइल त नहान रहे, कार्तिक पुर्णिमा के नहान. सोचनी कि वाह रे भाषा के कमाल, नहइला के सामूहिक कर्म अगर कवनो खास दिन होखो त ऊ नहान हो गइल बाकी दिने त लोग अलगे अलगे नहाइले करे ला. आ नहानो खासे खास दिन होला, कार्तिक पूर्णिमा के नहान, खिचड़ी के नहान, कुंभ के नहान वगैरह एही में से कुछ खास नहान हई स. बाकिर नहइला में जरुरे कवनो बात होखी कि भारत जइसन गरम देश में नहाइल एगो सत्कर्म बन गइल.

सोचे लगनी त सोचनी कि नहाये का बारे में कुछ कहावतो मशहूर बाड़ी सन. कहल जाला कि जिनगी में तीन गो नहान से केहू बच ना सके, जनमे का दिन, बिआह का दिन आ मौत का दिन. बाकिर फेर एहमें से मौत के दिन वाला नहान त जिनिगी से बाहर के हो गइल. एहसे दूइये गो जरुरी नहान रह गइल. एकरा बाद कहल जाला कि साल में तीन गो नहान बहुते महत्व के होला, खिचड़ी के नहान, फगुआ के नहान, आ कार्तिक पुर्णिमा के नहान. फेर एहू में से फगुआ वाला नहान निकाल दीं काहे कि ओह दिन कादो पांक से आदमी अतना रंगा जाला कि नहाइल मजबूरी बन जाले.

फेर नहाइलो त कई तरह के होला. इतिहास गवाह बा कि कबो कबो केहू जिद्द ध लेला कि हम खूने नहाइब अपना दुश्मन के. त केहू पसीने से नहा लेला. खुन से नहाइल त कबो आदर्श ना कहल जा सके, हँ पसीना में नहाइल जरुर कामकाजी आदमी देखावेला जे अपना काम में अनधुन लागल रहेला.

आ एही पर एगो चुटकुलो याद आ गइल जवन एक बेर कवनो पत्रिका में देखले रहीं, पता ना कइसे लोग महीना महीना ना नहाला, हमरा त अनतीसवे दिन खुजली हो जाला!

हमरा पूरा भरोसा रहुवे कि रउरा में से केहू बतकुच्चन के खाल ना खींची. आ उहे भइल. चलीं कम से कम लोग के अतना बेजाँय त ना लागल ऊ खीसे नहा जाव आ कुछ लिख बइठो. चलीं फेर अगिला बेर सही.

- बतबनवा


बतकुच्चन के पिछला कड़ी