अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

धारावाहिक कहानी

गमछा पाड़े

सब केहू पाड़ेजी के आश्चर्य से देखे लागल. अइसन ना रहे कि केहू उनका के पहिचानत ना रहे बाकिर उनका दावा पर केहू के यकीन ना होत रहे.

"ई का कहत हउऽव पाड़े ? जवन काम पुलिस महीना भर में ना कर पईलसि ऊ काम तू सात दिन में कर देबऽ?" ‍ - बुआजी सबकर शंका पाड़े जी पर जाहिरो कर दिहली.

"बहिना, पहिलका बात त ई कि हमरा के गमछा पाड़े सुने में ज्यादा संतोष मिलेला अउरी दुसरका बात ई कि हमरा ज्ञान के कबो चैलेन्ज मत करीहे. हमरा खातिर सातो दिन बहुत ज्यादा बा काहे से कि कातिल त हमरा सामने बा."

"काऽऽ ?" सब केहू पाड़ेजी के फेरु आश्चर्य से देखे लागल आ पांड़हूजी सबका चेहरा पर आइल भाव के पढ़े के कोशिश करे लगले. कुछ अइसे कि कातिल के अजुवे पकड़ लिहन. घुमफिर के उनकर टेढ़ निगाह बुआजी पर आ के टिक गइल आ तनी असहज हो गइल बुआजी खुद के संभाले के कोशिश करत पाड़ेजी से पुछ दिहली - "हमके अईसे का देखत हउवऽ? कहीं पुलिस के तरे तोहरो हमरे पर त शक नाही होत हौऽ?"

बुआजी के बात सुन के पाड़ेजी कुछ कहतन ओकरा पहिले ममतो कुछ कहल चाहत रहे बाकि पाड़ेजी ओकरा के चुप रहे के इशारा करत कहले ‍- "कुछ कहे के जरुरत नाही बा ममता बिटिया. जबले हम कातिल के सामने नइखीं कर देत तबले हमरा सबका पर शक बा. एही से हम एगो बात अउरी कहे चाहत बानी. सात दिन तक ईंहा मौजूद हर केहू के एहीजगे रहे के पड़ी. पूरा सात दिन तक." पाड़ेजी आपन बात दोहरावत ममता के दुलहा के चेहरा पर नजर गड़ावत फेर कहले - "हमार बात समझ में आइल नू पाहुन?"

"बाकिर हम ईंहा कइसे रह सकत हईं? हमके आफिसो जाये के होला." ममता के दुलहा आपन परेशानी बतवलसि त ममता ओकरा समर्थन मे कुछ कहल चहली. बाकिर पाड़ेजी ओकरा पहिलहीं बोल पड़ले - "आफिस त रउआ ईहँवो से जा सकत बानी. हँ जदि एह घर में रहे में कवनो समस्या बा त हम अपना कुटिया पर राउर व्यवस्था करा देब."

"बाकिर चच्चा...." पाड़ेजी के बात सुनके ममता कुछ कहे चाहत रहल कि पाड़ेजी ओकरा ओरि घूर के देखले. ममता शायद घूरे क मतलब समझ गइल अउरी आपन सम्बोधन के सुधार के कहे शुरु कईलस - "गमछा चच्चा !" गमछा सुन के पाड़ेजी के गंभीर चेहरा सामान्य हो गइल. "बाबूजी के कातिल से राजन के का सम्बन्ध?"

"सम्बन्ध त उपर वाला जाने बिटिया. हम त खाली सात दिन खातिर कहत बानी. आगे भोले बाबा देखीहन." कह के पाड़ेजी जाये लगले बाकिर दरवाजा के बाहर जाये का पहिलहीं केहू के बड़बड़ाहट सुन के रुक गइले.

"लगत हौ पाँच लाख के बात सुन के पंडितजी के दिमाग घुम गइल हौ..." कहे वाला बुआजी के लईका रहे जे ई समझत रहे कि पाड़ेजी चल गइल बाड़े. "सही कहत बाड़ऽ बबुआ!" - पाड़ेजी पलट के ओकरे पास आके रुक गइले. ओकर त बूझि लऽ कि सिट्टी पिट्टी गुम हो गइल. ओकरा त बुझईबे ना कइल कि का कइल जाव.

"वइसे त हम बनारसी कम्मे बोलीला. बाकिर एक ठे बनारसी कहावत याद जरुर दियाइब. पहिले तउलऽ फिर बोलऽ... सात दिन का अन्दर कातिल नाही मिलल तऽ ५ लाख रुपिया हमरे घरे से आके ले लीहे." कहि के पाड़ेजी जाए लगले बाकि फेरु रुक के सबका से मुखातिब हो के कहले "यदि आप सब सचमुच महादेव बाबू के कातिल के सामने लियाबे चाहत हउआ त सात दिन तक ईहँवा से केहू ना जाव. जवाई बाबू आपो."

एतना कहि के पाड़ेजी उहाँ एक पल ना रुकले. सब केहु का करे का ना करे क मुद्रा में एक दोसरा के देखे लागल.

दूसरका भाग खतम


पाठक लोग के कहनाम

बहुत बहुत बढ़िया लागल अन्तिम बात "यदि आप सब सचमुच महादेव बाबू के कातिल के सामने लियाबे चाहत हउआ त सात दिन तक ईहँवा से केहू ना जाव. जवाई बाबू आपो.". अगिला एपिसोड का इन्तजार में बानी आउर अभय भईया से हम इहे चाहम कि गमछा पाड़े के बाद दोसर भी कवनो धारावाहिक के अनुभव करे के मिले. एक बेर फरे से सादर नमस्कार अउर धन्यवाद अभय भईया जी के.
नूर आलम बादशाह,
दोहा कतर से.
(27-04-09)