लाल साहब

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लाल साहब के कुण्डलियाँ

1

अन्हरा त कानून हऽ, कहे सभे कोई आज.
दुर्योधन के बाप के, कइसे बचिहें लाज.
कइसे बचिहें लाज, कर्ण जब रिश्वत खइहें.
भीम से ले के घूस, अकेले मउज उड़इहें.
छिपल रहल अब घूस, न्याय जब ओढ़लस कमरा.
के करिहें इन्साफ, भइले कानूने अन्हरा.

2

गुरु द्रोण के शिष्य में, अर्जुन पीछे होय.
दुर्योधन ट्यूशन पढ़े, घर में अर्जुन रोय.
घर में अर्जुन रोय, कबो त घात लगाइब.
काटब गुरु के हाथ जबे हम मउका पाइब.
ना मिलिहें एकलव्य, अंगूठा दीहें तोड़ि के.
चेलवे काटी हाथ, आज अब गुरु द्रोण के.

3

लोकतंत्र के राज में, लोक नाहीं बा तंत्र.
गदहा अब कंचन चरी, जनता जपिहें मंत्र.
जनता जपिहें मंत्र, जे हमहूं गदहा होइतीं.
हमहूं करितीं राज,नाफिर हम कबहूं रोइतीं.
करे घोटाला आजु, कहीं नेता अधिकारी.
लोकतंत्र के राज में लूटें पारा पारी.

4

असली नेता उहे हऽ, जे दंगा रोज कराय.
दोसरा के घर फूंकि के, झूठहूं लोर बहाय.
झूठहूं लोर बहाय, कबो ना करे भलाई.
जनता के हक लूटि, उ काटे रोज मलाई.
भाषण से भरमाय के, सभकर वोत ऊ ले ता.
सांच कबहूं ना बोले, असली उहे ह नेता.

5

दूर्योधन नेता बनल, जनता द्रोपदी होय.
चमचा दुःशासन भइल अब लाज ना रखिहें कोय.
अबलाज ना रखिहें कोय, बेचारी जनता रोये.
दूर्योधन के संग ही, कन्हैया जी अब सोवें.
चमचा बा बरियार,द्रोपदी चीर खिंचइलें.
ना रहिहें अब लाज दुर्योधन नेता भइलें.