लोग लुगाई का होई

शम्भुनाथ उपाध्याय

जब साथ ना केहू अन्त ले दी, तऽ लोग लुगाई का होई ?
दुनिया मतलब के साथी बा, केहुये से मिताइ का होई ?

भाई माई बेटवा बिटिया, खाली सुखवे के संगी बा.
जब भीरि परि तऽ छँटि जाई, लोहू के कमाई का होई ?

जेकरे खातिर मुअबऽ जीयबऽ ऊहे तोहके डाँड़ी बान्ही.
जब आपन तोहके ना पूछी, दोसरा से भलाई का होई ?

जब ले जोरवा बा जाँगर में, आछो आछो तू भइल बाड़ऽ
थकबऽ काटो काटो होइबऽ, तन के सुघराई का होई ?

मुअला का बाद ना अइबऽ हो, लरिकन के सुख दुख देखे तूँ,
झूठे दुनिया का चक्कर में बेकार लड़ाई का होई ?