लघुकथा संग्रह थाती

एह संग्रह में पचपन गो लघुकथा बाड़ी स. सगरी संग्रह एक एक क के प्रकाशित कइल जाई.

भगवती प्रसाद द्विवेदी

मेहनताना

थाकल डेग भरत सुधीर स्कूल का ओरि बढ़ल जात रहले. उनकर मूड अबहूँ उखड़ल-उखड़ल-अस रहे. थोरहीं देर पहिले त, जब ऊ स्कूल जाए खातिर तेयारिये करत रहले, उधार के पइसा वसूले खातिर राधेश्याम बनिया तगादा करे आ गइल रहले आ उन्हुकरा लाख गिड़गिड़इला आ चिरउरी कइल० पर जरला प नून छिरिकिए के लवटल रहले. सुधीर के मन में ओही घरी आइल रहे जे अबहिंये इस्तीफा देके आदर्श शिशु विद्यालय क४ एह दू कौड़ी के नौकरी के लात मारि देसु. एह पबल्िक स्कूल के बदौलते त प्रबन्धक, जवन प्रिन्सिपलो बा, लाखन रोपेया से झुनझुना नियर खेलेला, बाकिर तनखाह का नाम पर हमनी के दू हजार पर दस्तखत करा के दिही पाँच सौ रुपुली आ ऊहो दस दिन धउरला का बाद. एक त दिन भर लइकन का संगे माथापच्ची करत उन्हनीं के चरवाही करऽ आ उपर से प्रिन्सिपलोके डाँट-डपट सुनऽ. स्साला! ऊ सड़के प पच्च-से थूकि दिहले.

गौड़िया मठ का लगे लोगन के भीड़ देखिके सुधीरो उहाँ जा चहुँपले. ऊहाँ एगो रेकसावाला के संगे एगो बाबू के कहा-सुनी चलत रहे. रेकसावाला महेन्द्रू मुहल्ला से इहाँ तक के भाड़ा बीस रोपेया माँगत रहे, बाकिर बाबू सात रुपिया से एको पइसा बेसी देवे खातिर तेयान रहले.

"ठीक बा बाबू साहब, रउआँ इहो सात रोपेया लेले जाईं. एगो गरीब के मेहनताना मारि के रउएं राजा हो जाईं!" रेकसावाला बाबू के दिहल रोपेया फेरु उन्हुके थमा दिहलस.

"जा, जवन करे के होई तवन करि लीहऽ! हुँह!" बाबू मुसुकी कटले आ रोपेया बगली में धरत आगा बढ़े लगले.

बाकिर रेकसावाला फेरु उन्हुका ओरि लपकल, "कहवां चलि दिहलऽ बाबू साहेब? ताव देखावत बाड़? भिखमंगी करत बानी का हम तहरा से? वाजिब मेहनताना देक जा, नाहीं त ठीक ना होई, बुझलऽ?" रेकसावाला पाछा से ओह बाबू के कमीज के कॉलर पकड़ि लिहलस आ अपना ओरि खीँचे लागल.

सुधीर के मुट्ठी अपने आप कसाए लगली स. उन्हुका बुझाइल जइसे रेकसावाला का जगहा पर ऊ खुदे ठाढ़ होखसु, जइसे ऊ पाँच सौ रुपुली स्कूल के प्रिन्सिपल का मुँह पर फेंकि देले होखसु आ कुरता के कॉलर ध के उचित मेहनताना के माँग करत होखसु.


भगवती प्रसाद द्विवेदी, टेलीफोन भवन, पो.बाक्स ११५, पटना ८००००१