अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

 

महँगी महँगी रटिया भइया


महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।
सबै जगह अधिकार हौ एकर काशी हो या रशिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
छोड़ऽऽ मन्दिर मस्जिद जाये नाहक जिन तु भटकिया,
रटते जइया सदा ए भइया कहीं न जिन तू अटकिया।
अगर से कोई जे तोहके छेड़े ओके तुरन्त झटकिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
सोते जगते खाते पीते एकरा संग ही लिपटिया,
करिहऽऽ अब परचार एहि कऽऽ एहि के संग मटकिया।
सस्ती कहीं से ताक लगावे ओके तुरन्त पटकिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
करला जहाँ विरोध ए भइया होईहे खूब पिटइया,
पड़ जाइ फाँसी औ जग में होइ नाम घिसइया।
सुख पइबा इहि में अब से इकरे नाम गटकिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।
 
अच्छाई जे मन में आवे मन ही मन में सटकिया,
उपदेशक जिन बनिहा कबहु राह न एकरे फटकिया।
भूल के आपन दीन धरम अब सबकर माल कपटिया,
महँगी महँगी रटिया भइया महँगी महँगी रटिया।।