मगन किसान बाड़े

शम्भुनाथ उपाध्याय

मगन किसान बाड़े हासिल निहारी.
गदराइल मटरा सरिसउवा तीसी चना फुलाईल.
रंग बिरंगा खेत देखि के, खेतिहर बा अगराइल.
हँसेला किसानवा सोचेला अपना मनवा,
असों नाही रहि बड़कि बुचिया कुँवारी.
मगन किसान बाड़े हासिल निहारी.

चनवा दे दी साहू के करजा, मटरा खादि के खरचा.
घरवाली के समुझाइब कि जनि करिहे तूँ चरचा.
गोहूँआ खिआ दीही सउँसे बाराति,
तेल के खरच सरिसउवा सम्हारी.
मगन किसान बाड़े हासिल निहारी.

जऊवा सब लरिकन के पाली, दालि बनि लेतरी के.
बा अभाग धनिया, का देखिहें सपना देवपरी के.
गुड़वा बिकाई, पगरी रंगाई.
धनिया के बेसहबि छापली सारी.
मगन किसान बाड़े हासिल निहारी.

बछवा दे के करबि निहोरा, रूसल हीत मनाईबि.
हे भगवान आस के पूरवऽ, हम परसाद चढ़ाइबि.
पुरइबि सपनवा, चहकी अँगनवा,
डोली चढ़ि जादिन दुलहा अइहें दुआरि.
मगन किसान बाड़े हासिल निहारी.