Manoj "Bhawuk"

London

फागुन के उत्पात : भइल गुलाबी गाल

- मनोज भावुक़

हई ना देखs ए सखी फागुन के उत्पात ।
दिनवो लागे आजकल पिया-मिलन के रात ॥1॥

अमरइया के गंध आ कोयलिया के तान ।
दइया रे दइया बुला लेइये लीही जान ॥2॥

ठूठों में फूटे कली, अइसन आइल जोश ।
अब एह आलम में भला, केकरा होई होश ॥3॥

महुआ चुअत पेड़ बा अउर नशीला गंध ।
भावुक अब टुटबे करी, संयम के अनुबंध ॥4॥

बाहर-बाहर हरियरी, भीतर-भीतर रेह ।
जले बिरह के आग में गोरी-गोरी देह ॥5॥

भावुक हो तोहरा बिना कइसन ई मधुमास।
हँसी-खुशी सब बन गइल बलुरेती के प्यास ॥6॥

हमरो के डसिये गइल ई फागुन के नाग।
अब जहरीला देह में लहरे लागल आग ॥7॥

मन महुआ के पेड़ आ तन पलाश के फूल ।
गोरिया हो एह रूप के कइसे जाईं भूल ॥8॥

हँसे कुंआरी मंजरी भावुक डाले-डाल ।
बिना रंग-गुलाल के भइल गुलाबी गाल॥9॥

जब-जब आवे गाँव में ई बउराइल फाग।
थिरके हमरा होठ पर अजब-गजब के राग॥10॥

कोयलिया जब-जब रटे काम-तंत्र के जाप।
तब-तब हमरो माथ पर चढ़िये जाला पाप ॥11॥

मादकता ले बाग में जब वसंत आ जाय।
कांच टिकोरा देख के मन-तोता ललचाय ॥12॥

तन के बुझे पियास पर मन ई कहाँ अघाय।
ई ससुरा जेतने पिये ओतने ई बउराय ॥13॥

गड़ी,छुहाड़ा,गोझिया भा रसगुल्ला तीन।
के तोहसे बा रसभरल, के तोहसे नमकीन॥14॥

चढ़ल ना कवनो रंग फिर जब से चढ़ल तोहार।
भावुक कइसन रंग में रंगलs अंग हमार॥15॥

आग लगे एह फाग के जे लहकावे आग ।
पिया बसल परदेश में, भाग कोयलिया भाग॥16॥

लहुरा देवर घात में ले के रंग-गुलाल।
भउजी खिड़की पे खड़ा देखें सगरी हाल॥17॥

अंगना में बाटे मचल भावुक हो हुड़दंग।
सब के सब लेके भिड़ल भर-भर बल्टी रंग॥18॥

साली मोर बनारसी, होठे लाली पान।
फागुन में अइसन लगे जस बदरी में चान॥19॥

कबो चिकोटी काट के जे सहलावे माथ ।
कहाँ गइल ऊ कहाँ गइल, मेंहदी वाला हाथ॥20॥

फागुन में आवे बहुत निर्मोही के याद ।
पागल होके मन करे खुद से खुद संवाद॥21॥

माघ रजाई में रहे जइसे मन में लाज ।
फागुन अइसन बेहया थिरके सकल समाज॥22॥

कींचड़-कांदों गांव के सब फागुन में साफ।
मिटे हिया के मैल भी, ना पूरा त हाफ॥23॥

महुए पर उतरल सदा चाहे आदि या अंत।
जिनिगी के बागान में उतरे कबो वसंत ।।24॥

के बाटे अनुकूल आ के बाटे प्रतिकूल।
ई कहवाँ सोचे कबो उड़त फागुनी धूल॥25॥

फागुन के हलचल मचल खिलल देह के फूल।
मन-भौंरा व्याकुल भइल, कर ना जाये भूल॥26॥

झुक-झुक के चुम्बन करे बनिहारिन के गाल।
एतना लदरल खेत में जौ-गेहूं के बाल॥27॥

एतना उड़ल गुलाल कि भउजी लाले-लाल।
भइया के कुर्ता बनल, फट-फुट के रूमाल॥28॥

मह-मह महके रात-दिन पिया मिलन के याद।
भीतर ले उकसा गइल, फागुन के जल्लाद॥29॥

भावुक तू कहले रहS आइब सावन बाद।
फगुओ आके चल गइल, ना चिट्ठी,संवाद॥30॥

भावुक जी के सगरी रचना ऊहाँ के निजी ब्लॉग पर भी मौजूद मिली. शैलेश मिश्र के बाद अब भावुक जी भी आपन ब्लॉग लेके आईल बानीं. बधाई. भोजपुरी के प्रचार प्रसार खातिर अइसनका हर प्रयास के स्वागत बा.