– जयंती पांडेय

संसद के बइठक अब शूरू होखेवाला बा. ओही के तइयारी में भाजपो उठक बइठक क रहल बिया. संसद में कइसे सरकार के लुगा लूटल जाव. इ हमनी के लोकतंत्र ह. लेकिन करबऽ का? हमनी का एगो लोकतांत्रिक देश में रहत बानी सन, आ लोकतंत्र के त इहे मजा ह कि व्यक्तिगत अधिकारा के नांव पर जवन मन में आवे करऽ. चाहे संसद मत चले द, चाहे रेल. लोग के तकलीफ होई त ओहसे का. अधिकार के इहे मतलब होला. ई अधिकार सेतिहे नइखे मिलल. एकरा खातिर हमनी के पुरबज लोग ना जाने कतना कुर्बानी दिहल. कतना लोग के जान गइल. सुने के त इहो मिलेला कि केतना लम्पट, लबार आ चोर गिरहकटो ई आजादी मंगला क चलते जेल जाए वाला सर्टिफिकेट ले के अबहुओं पेंशन ले रहल बा लोग. आ आजु काल ई आजादी के बनवले रखला खातिर हमनी के नेता लोग मार पसेना बहावत बा. रात दिन एक कइले बा. चाहे देश के बेशकीमती खनिज के बचावे खातिर ओकरा से आपन घर भर देबे के बात होखो चाहे अउरी कवनो. एही चलते अपना देश के गरीब से गरीब अदमिओ एह आजादी के एंजाय कर रहल बा.

आजादी के माने होला एजाय कइल. ई चीजे अइसन ह. ना त के कही कि हमनी का आजाद बानी सन आ आजाद देश के बासी हईं सन. हमनी के अधिकार के गारंटी देबे वाला एगो संविधान हमनी का लगे बा. ई बात के त गौरव महसूस करे के चाहीं कि जे लोग झोंपड़ी में रहेला आ लगभग लंगटे घूमेला उहो आजादी के एंजाय कर रहल बा ई देश में. गणतंत्र दिवस के लगभग एक महीना बाद संसद के ना चले देवे के तइयारी में कई गो पार्टी लागल बाड़ी सन. जवना देश में आधा लोग के दू बेरा के रोटी ना भेंटाला ओह लोग के प्रतिनिधि आजादी के नांव पर देश के करोड़ो रुपिया असहीं फूंक दे रहल बा.

ई बात के धेयान दिहब सब कि जब हमनी का गुलाम रहनी सन तब हमनी के मालिक लोग ई करिया लोग के एंटरटेनमेट पर तनिको धेयान ना दिहल. जब आजादी मिलल त ऊ नीड़स जिनिगी में बहार आ गइल. आज अपना देश में एही आजादी के चलते घोटालन के बहार बा. हर स्तर पर घोटाल हो रहल बा. घोटाला करे वाला गुरू घंटाल लोग अइसन बा कि जब उनका मलाई काटे के ना मिले त ऊ लोग एकजुट हो के खाएब ना त खयके बिगाड़ देब वाला हालत कर देला लोग. आज जब लोग, खास कर के नौजवान लोग, कहेला कि काम नइखे मिलत, बेकारी बा. तब बड़ा बेजाँय लागेला. हमार त ई कहल ह कि निराश मत होखीं, आपन धंधा करीं. आजु काल्हु धंधा में बहुते इस्कोप बा. दोकान के ताला तुरला से ले के नकली चायपत्ती बनवला के धंधा ले अनगिनत धंधा बा. दिनो में बा, रातो में बा. बस एतना करीहऽ लोग कि पुलिस आ नेताजी लोग के खेयाल रखीहऽ, ऊ लगो तहार राख ली. एतमासफीयर एकदम फ्रेंडली बनवले रखीहऽ, एक दोसरा के सहयोग से धंधा चल निकली.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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By Editor

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