राड़ आ राँड़ के गठबन्हन – बतकुच्चन (207)

देश के राजनीति समुझे बाला एहघरी परेशान बाड़ें. उनुका बुझात नइखे कि हो का रहल बा. एही अझूराहट में हमहूं बानी. कि राड़ आ राँड़ के गठबन्हन कइसे भइल आ…

उल्था आ उलटबाँसि (बतकुच्चन – 206)

आजु ढेर दिना बाद बतकुच्चन लिखे बइठल बानी. करीब पाँच बरिस पहिले हर हफ्ता एगो बतकुच्चन लिखल मजबूरी जइसन रहत रहे. काहें कि कलकत्ता (आजु के कोलकाता) से छपे वाली…

बतरस आ पाती

अनिल कुमार राय ‘आंजनेय’ भोजपुरी अइसन भाषा ह, जवना पर केहू गुमान करि सकेला. एह भाषा के जेही पढ़ल, जेही सुनल, जेही गुनल ऊहे अगराइल, ऊहे धधाइल, ऊहे सराहल, ऊहे…

हद, हदस, हदसल, हदसावल, हदसी, हदीस, हादसा (बतकुच्चन – 205)

हद, हदस, हदसल, हदसावल, हदसी, हदीस, हादसा. मामिला बेहद गंभीर बा आ बतकुच्चन करे में मन हदसल बा कि पता ना कब केने से इशरत के अब्बा भा वानी के…

अनसोहाते अनसाईल अनसाह (बतकुच्चन – 194)

कबो ट्रेन के टाइम त कबो हवाई जहाज के टाइम का चलते अनसोहाते मौका मिल जाला बतकुच्चन से आराम करे के. सोहाव त ना बाकिर कुछ देर ला सोहावन जरूर…

घूर का घुरची में घुरचियाइल (बतकुच्चन – 193)

जय हो बाबा लस्टमानंद के! पिछला अतवार के घूर के चरचा में अइसन टीप दिहलन कि सोचल धरा गइल आ हम घूर का घुरची में घुरचिया के रह गइनी. सोचे…

कमान आ कमीना का बहाने (बतकुच्चन – 192)

भासा संस्कार से बनेला आ संस्कार भासा से. भासा संस्कार देखावेले आ संस्कार भासा के इस्तेमाल के कमान सम्हारेले. कमान सम्हारे खातिर कई बेर कमानी चढ़ावे पड़ेला आ कई बेर…

गउँवा गउँईं त गईंया भेंटइले (बतकुच्चन – 191)

भोजपुरी के खासियत ह कि एकरा में नया शब्द गढ़े के अपार बेंवत मौजूद बा आ इहे एकर कमजोरियो साबित हो जाले कई बेर. हिन्दी के विद्वान लोग जब भोजपुरी…

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