अपनी हार, मार पत्नी की, कौन भला किससे कहता है

बात सत्तर के दशक की है. तब देश में सिर्फ आकाशवाणी हुआ करती थी. उस समय दूरदर्शन की भी शुरुआत नहीं हुई थी. मैं तब इन्टर का छात्र था और बहुतेरे नवांकुरों की तरह मैं भी कुछ लिखने की कोशिश करता रहता था. एक बहुत ही साधारण कविता मैंने पटना आकाशवाणी के विचारार्थ भेजी थी. एक दिन वहां से बुलावा आ गया कि फला दिन आ जाईए रिकार्डिंग करानी है. मैं नियत तिथि को नियत समय पर पहुँच गया था. वहां दो युवा कवियित्रियां भी थीं. उनका नाम याद है पर बताने की कोई जरुरत नहीं है. संभवत: उन्हीें के कारण मुझे भी आकाशवाणी पर अपनी कविता सुनाने के मौका मिल गया था. रिकार्डिंग हुई भी पर पूरा समय नहीं चल पाई क्योंकि आधा घंटा खींचना हम तीनों के लिए श्रमसाध्य था. रिकार्डिंग के बाद प्रस्तोता ने बताया कि आज तक उन्होंने इतना वाहियात कार्यक्रम प्रस्तुत नहीं किया है पर दुर्भाग्य से इसे प्रसारित भी करना ही होगा क्योंकि इसकी घोषणा की जा चुकी है.

उस दिन जब मैं अपने कमरे में लौटा तो पहली बार एक व्यंग्य कविता लिख मारी थी –
अपनी हार, मार पत्नी की
कौन भला किसको कहता है.
धूल झाड़ कर, बाहर आ कर
सब कहते हैं फिसल गया था!

पूरी कविता नहीं बता रहा क्योंकि उसकी कोई जरुरत नहीं है. बस आज के लेख के लिये शीर्षक यही उचित लगा सो कुछ पंक्तियां बढ़ गईं जैसा कि उस दिन मैंने अपनी गजल को गा कर समय लम्बा करने का प्रयास किया था.

आज यह लेख लिख रहा हूं आम वणिकों के लिये. हर वणिक ऐसी परिस्थितियों से दो चार होता रहता है. शिकारी आएगा, जाल बिछाएगा, दाना डालेगा, पर लोभ से उसमें फंसना नहीं. संत कि सिखाई हुईं इन पक्तियों को वे चिड़िया तब भी लगातार दुहरा रही थीं जब वे बहेलिया के बिछाए जाल में फंस चुकी थीं.

वणिक गुरु हमेशा कहते हैं कि अनुशासन में रहो. खरीदने बेचने से पहले अपनी योजना बना लो. क्या खरीदना है, कब खरीदना है, कहां तक रुकना है, और कब निकल भागना है. पर मुश्किल से इस कथन का पालन कर पाते हैँ हम सब. मैं तो और भी खतरे का खिलाड़ी हूं. मैं कमाता मुश्किल से हूं पर नई नई रणनीति बनाना और आजमाने की बीमारी लगी हुई है. जानता हूं कि आजतक ऐसी रणनीति नहीं बनी, ऐसा संकेतक नहीं बना जो शत प्रतिशल सफलता दिला सके. क्योंकि जिस दिन ऐसा हो गया बाजार उसी दिन उजड़ जाएगा.

दुसरी सीख दी जाती है कि पहले तय कर लो कि तु्म्हें निवेशक बनना है या वणिक. निवेशक ठोंक ठेठा कर अपने फैसले लेता है पर वणिक को तत्काल फैसला लेना होता है. लाभ हो गया तो तुरत निकल लेता है और नुकसान हो रहा हो तो उसे रोक लेता है कि शायद कल, शायद परसों, शायद अगले सप्ताह, शायद अगले महीने इसकी चाल बदल जाय और मेरी पूंजी निकल जाय. दुर्भाग्य से ऐसा होता कम ही है और थक हार कर जब हम उस सौदे से निकल जाते हैं तो उसके तुरंत बाद ही उसकी चाल सुधर जाती है.

हर वणिक के साथ ऐसा होता है कि जब कुछ खरीदता है तो वह गिरने लगता है, जब बेच देता है तो चढ़ना शुरु हो जाता है. ऐसा हालांकि इस लिए नहीं होता कि बाजार को आपसे कोई दुश्मनी निकालनी होती है. आप स्वंय कुछ ऐसा कर लेते हैं जो आपको हानि देने लगता है. सिगरेट शराब पीने वाले हर आदमी को मालूम होता है कि ये स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं. फिर भी बहुतेरे लोग शराब सिगरेट पीते ही रहते हैं. बहुत हद तक वणिकाई भी ऐसी ही लत होती है बहुतों के लिये. कुछ ही लोगों के लिये यह व्यवसाय होता है, अधिकतर लोगों का यह व्यसन होता है.

यहां वहां, इस चैनल पर उस चैनल पर अपनी ढोल पीटने वाले बहुत मिल जाएंगे. पर अपने नुकसान वाले सौदों की चरचा विरला ही करता है. “अपनी हार, मार पत्नी की, कौन भला किससे कहता है”. पर मैं तुझे बता देता हूं ..

आज मैंने एक बड़ा नुकसान उठाया. गलती से नहीं पूरी योजना के साथ. यह नुकसान इस लिये क्षम्य नहीं है कि यह स्टॉपलॉस नहीं था. यह औसतीकरण – averaging – का नतीजा था. पूंजी अलग फंसी हुई थी, नुकसान बढ़ता ही जा रहा था. जो अवसर दिख भी रहे थे उनुका उपयोग नहीं कर पा रहा था. सो मैंने एक नुकसान दे रहे स्टॉक का आधा बेच दिया. यह आधा बेचा तो दाम के दाम पर चूंकि लाभ हानि की गणना पहले आओ, पहले जाओ के सिद्धान्त पर होती है सो आधा हिस्सा जो पहले से खरीद रखा था उसका आकलन पहले होना था सो नुकसान हो ही गया. पर संतोष यह ही कुछ पूंजी मुक्त हो गई.

आज का लेख यही बताने के लिये, रेखांकित करने के लिए है कि अगर आप वणिकई – ट्रेडिंग – करते हैं तो सौदा करने से पहले उससे निकलने का फैसला बना लें. घाटे के सौदे को लटकाए रखना आपको और नुकसान देगा.

आप को शायद लगता होगा कि मैं यह सब क्यों बताता हूं. आप को उपयोगी लगता है या वाहियात, यह भी पता नहीं चलता. क्योंकि आप लोग सभ्य सुसंस्कृत लोग हें जो आलोचना नहीं करते, टिप्पणी भी नहीं करते. दूसरे शब्दों में कहूं तो आप सब इतने कंजूस हैं कि अपना बुखार तक किसी को नहीं दे, टिप्पणी की कौन कहे.

और अपनी आदत है कि भड़ास निकालता रहता हूं, निश्चिंत, निर्विकार भाव से कि जंगल में मोर नाचा, देखा किसने. आपने अपनी बकतुतई कर ली सुना किसने.

चाहता तो था कि आज आपको एक और नयी रणनीति बताऊं मगर लेख लंबा हो चुका है. अगर आप यहां तक पढ़ते आ गये हैं तो आपका सादर अभिनन्दन !

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